उत्तराखंड से भी है भगवान कृष्ण का गहरा नाता, यही के इस शहर से जाता था मोर पंख

रिपोर्ट- संजय पुण्डीर

हरिद्वार। भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन हर ग्रंथ में अपने अपने तरीके से किया गया है वृंदावन गोकुल मथुरा इन शहरों से तो भगवान कृष्ण का बेहद लगाओ रहा ही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड से भी भगवान कृष्ण का गहरा नाता रहा है भगवान के माथे पर लगा मोर पंख हरिद्वार से ही जाता था ।

भगवान कृष्ण

क्या आपको पता है कि भगवान कृष्ण के माथे पर लगे मोर पंख का नाता उत्तराखंड के हरिद्वार से है नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं भगवान कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था कहा जाता है कि कृष्णा का जन्म रात तकरीबन 12:00 बजे वर्ष लग्न में हुआ था रोहणी नक्षत्र था ।

सिंह राशि भी सूर्य था जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो उनके नाम करण कराने के लिए कात्यायन ऋषि मौजूद रहे जिन्होंने भगवान कृष्ण की कुंडली देखकर यह बताया कि उनकी कुंडली में सर्प दंश योग है यानी जीवन में कभी ना कभी उनको नाग से खतरा हो सकता है तब ऋषि कात्यान ने भगवान कृष्ण की मां यशोदा को यह कहा था कि अगर तुम अपने लल्ला को सुरक्षित रखना चाहते हैं।

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इनके माथे पर मोर का पंख लगाएं तब ऋषि कात्यायन ने भगवान कृष्ण की मां को हरिद्वार के बल्व पर्वत का पता बताया था कहते है की हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर आज भी राज्य में सबसे ज्यादा मोर होते है तब ऋषि ने ये साफ़ कह दिया था की हरिद्वार के मनसादेवी पर्वत से निकलने वाले नारायण स्रोत के आसपास के इलाके से ही मोर का पंख लाना होगा ।

इस जगह का महत्त्व इस लिए भी है क्योंकि इस पर्वत पर विराजमान है नाग पुत्री मनसादेवी ये बात किसी से छुपी नहीं है की मोर नाग का दुसमन होता है इसी लिए यही का जिक्र ऋषि ने किया था तब पहली बार इसी पर्वत से मोर पंख लेकर भगवान् कृष्ण के माथे पर लागाया गया था कहते है जब तक पृथ्वी पर भगवन कृष्ण रहे तब तक उनके लिए इसी पर्वत से मोर पंख भगवान् लगाते थे इस पर्वत को नाग पर्वत भी कहा जाता है इस बात का वर्णव कलिका पूरण में भी आता है इसके साथ ही भविष्य पुराण के साथ अग्नि पुराण में भी इस किस्से का जिक्र आता है कहते है की कंस के डर से भगवान् कृष्ण का नाम करण गोंशाला में करवाया था

 

 

 

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