
नवाबों के शहर लखनऊ को यूनेस्को ने क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी का खिताब दिया है। यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने उज्बेकिस्तान के समरकंद में 43वें महासम्मेलन में 58 नए शहरों की घोषणा की, जिसमें लखनऊ पाक कला विरासत के लिए शामिल हुआ। अब यूसीसीएन में 100 देशों के 408 शहर हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा, “लखनऊ की तहजीब, मेहमाननवाजी और लजीज जायके ने दुनिया को प्रभावित किया। दुनियाभर के लोगों को लखनऊ आने और इस विरासत को चखने का न्योता है।”
लखनऊ का लजीज सफर
लखनऊ की रसोई मुगलई, ईरानी और अवधी खानपान का अनोखा संगम है। इतिहासकार रवि भट्ट के अनुसार:
- 1708: ईरान से आए सआदत खां ने ईरानी मसाले जोड़े।
- 1764: बक्सर की लड़ाई के बाद नवाबों ने कला और पाक-कला पर ध्यान दिया।
- गलौटी कवाब: नवाबों के कमजोर दांतों के लिए नर्म मांस से बनाया गया।
- शियाओं की परंपरा: निहारी, कोरमा, शीरमाल में झलक।
लखनऊ के आइकॉनिक व्यंजन और दुकानें
| व्यंजन/दुकान | विशेषता | स्थापना |
|---|---|---|
| टुंडे कवाब | 100+ मसालों का गलौटी, हाजी मुराद अली | 1905 |
| इदरीस बिरयानी | दूध-मलाई से मुलायम चावल, मटन कोरमा | 1968 |
| रहीम की निहारी | कुलचा-निहारी, पुराना जायका | 1925 |
| प्रकाश की कुल्फी | ठंडी मिठास, हजरतगंज की शान | पुरानी |
| राजा ठंडाई | 145 साल पुरानी दुकान, बादाम-केसर | 1880 |
| अली हुसैन शीरमाल | गली का नाम ‘शीरमाल गली’ | पुरानी |
| जैन चाट, बास्केट चाट | हजरतगंज की स्ट्रीट फूड पहचान | – |
इदरीस बिरयानी मालिक अबु बकर: “वालिद इदरीस साहब ने 1968 में शुरू किया। दूध-मलाई से चावल मुलायम होते हैं। अनुराग कश्यप, अमेरिकी राजदूत, कई स्टार्स यहां आ चुके हैं।”
वैश्विक पहचान का असर
- पर्यटन बूस्ट: लखनऊ अब हैदराबाद, मुंबई की तरह गैस्ट्रोनॉमी टूरिज्म हब बनेगा।
- संरक्षण: प्राचीन रेसिपी, स्थानीय सामग्री, शिल्पकारों को बढ़ावा।
- अन्य भारतीय शहर: हैदराबाद (2024) पहले शामिल।
लखनऊ की यह उपलब्धि ‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा को वैश्विक मंच पर ले गई। अब दुनिया टुंडे के कवाब से लेकर राजा ठंडाई तक चखने आएगी।





