घर बनाने से पहले ही घर बसाने की जल्दी, सरकारी योजनाओं पर लटकी तलवार

नई दिल्ली: प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना यानि सबका आवास योजना को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल भी ऐसे गंभीर जिनपर चिंता होना लाजिमी है. पीएम मोदी का सपना यानि 2022 तक सबका हो आवास अपना जैसे नारे को ताख पर रख कर जनता अपनी अधूरी ख्वाहिशों को अमलीजामा पहनाने में लगी हुई है.प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जरूरतमंद लोगों की आर्थि‍क मदद की जाती है जिसके जरिये 2022 तक देश में सबके पास मकान हो सके लेकिन कुछ लोग इस योजना से मिले पैसे को जिस तरह से बर्बाद कर रहे हैं उससे सरकार के लिए काफी मुश्किल खड़ी हो रही है.सबका आवास

राजस्थान में कुछ लोगों ने इस मद के तहत मिले पैसे को तमाम दूसरे कामों जैसे बाइक खरीदने और यहां तक कि दूसरी शादी करने में खर्च कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में भी लोग अनियमितता और घपला करने से बाज नहीं आ रहे हैं.

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योजना के अनुसार किसी लाभार्थी को मकान बनाने के लिए 1.48 लाख रुपये दिए जाते हैं. इस पैसे से एक कमरा, स्टोर, किचेन और बरामदा बनाने की उम्मीद की जाती है. उदाहरण के तौर पर फागी में रहने वाले 45 साल के एहसान और उसके तीन बच्चे हैं और चारों लोग मजदूरी करते हैं. वे पहले की तरह अब भी एक अस्थायी मकान में रहते हैं. यह अलग बात है कि उसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने के लिए दो किस्त राशि मिल चुकी है.

2017 में उसे 30,000 रुपये की पहली किस्त मिली और नवंबर 2017 में 90,000 रुपये की दूसरी किस्त मिली लेकिन उसने सारा पैसा कहीं और खर्च कर दिया.

सरकार योजना के तहत पैसा सीधे लाभार्थ‍ियों के बैंक अकाउंट में डाल देती है लेकिन कुछ लोग इस पैसे को मकान बनाने की जगह दूसरे काम में लगा दे रहे हैं. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोपड़ियां हैं जिससे परेशान सरकार अब लोगों पर मुकदमा दर्ज करवाने की धमकी दे रही है. अब तक 80 गरीबों के खिलाफ मुकदमा दर्ज भी किया गया है.

फागी के ही अशोक ब्रह्मबहात को मकान बनाने के लिए दो किस्त राशि मिल चुकी है लेकिन उसने छत पक्का बनाने की जगह बस टीन लगा लिया है.

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जयपुर जिले के पाटन इलाके में रहने वाले भीमा राम सैनी का भी मामला ऐसा ही है उसे पीएम आवास योजना के तहत पैसा मिल चुका है लेकिन वह अब भी किराए के मकान में रहता है.

नवीन को भी मकान बनाने की पहली किस्त 22,500 रुपये की मिल चुकी है लेकिन उसका कहना है कि उसका पैसा उपचार में खर्च हो गया.

अब अधिकारियों ने उससे कहा कि उसे आगे पैसा तब ही मिलेगा जब वह पहली किस्त से मिले पैसे से हुए काम का सबूत देगा. इन सबपर राजस्थान सरकार आँख बंद कर रक्खी है.

राजस्थान के ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र राठौर तो बड़े भरोसे से कहते हैं, ‘कई जगहों पर ऐसी समस्याएं देखी गई हैं, लेकिन राजस्थान में ऐसी चीजें सामने नहीं आई हैं.

आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में साल 2016-17 में 2,58,058 मकान बनाने का लक्ष्य था जिनमें से 2,50,015 मकानों के निर्माण के लिए पैसा दिया जा चुका है.

सच यह है कि सिर्फ 1,59,102 लोगों को ही योजना की तीसरी किस्त मिल पाई है.

साल 2017-18 के आंकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं. इस दौरान 2,23,629 मकान बनाने का लक्ष्य था और इसमें से 2,15,347 लोगों को पहली किस्त मिल चुकी है लेकिन सिर्फ 36,786 लोगों ने ही तीसरी किस्त ली है और अंतिम किस्त 20 फीसदी से भी कम लोगों ने ली है.

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