कोरोना ने बिगाड़ी पूरे देश की स्थिति, हर तरफ फंसे हैं लोग…
पूरे देश में लगे लॉकडाउन ने पूरे देश की स्थिति बिगाड़ दी है हर तरफ लोग अपने अपने घरों को जाने के लिए बैठें हैं। पीएम के ऐलान के कुछ ही घंटों के बाद मुंबई से लेकर सूरत सभी मजदूरों की भीड़ इक्कठा हो गई है। स्थिति दिनों दिन और भी खराब होती हुई दिखाई दे रही है।
इसे लेकर सवाल भी उठने लगे कि ये मजदूरों के बीच अफवाह फैलाने की साजिश तो नहीं और यह भी कि मजदूर काम नहीं मिलने और भोजन तथा रुकने के अपर्याप्त और असम्मानजनक इंतजाम से छटपटा कर मजदूर घर जाने के लिए कुछ भी करने को आमादा हैं। यह सच है कि बातों से काम नहीं चलता, पहली दफा ऐसे हालात से रूबरू सरकारें और तंत्र भी एक स्तर पर कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं।
लॉकडाउन के दूसरे चरण में पहले चरण के दौरान आई दिक्कतों को तुरंत दूर करने की जरूरत है। सरकार के स्तर पर भी और समाज के स्तर पर भी। लेकिन महानगरों और छोटे शहरों के अलावा गांवों में भी एक समस्या विकराल होने की तरफ अग्रसर है। वह है पहले फसल काटने में आ रही मुश्किलें और अब कुछ राहत मिली है तो बाहर जिलों या प्रांतों से आए फसल काटने वाले खेतिहर मजदूर। इन सीजनल मजदूरों को मप्र के अंचलों में चैतुए कहा जाता है।
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ये फरवरी मार्च में यानी फागुन के महीने में आते हैं और मार्च, अप्रैल से मई तक यानी चैत से वैशाख की शुरुआत तक गेहूं की फसल की कटाई का काम करते हैं। इस मजदूरी में उन्हें गेहूं मिलता है। वे उसे लेकर अपने अपने घरों को लौट जाते हैं। इससे उनके साल भर का गेहूं का इंतजाम हो जाता है और वे राहत महसूस करते हैं। मप्र के कई अंचलों में लॉकडाउन ने इन चैतुए को भी फंसा दिया है। शहरों में लॉकडाउन लागू करवाने और जिलों की सीमाएं सील करने में लगे प्रशासन को इन चैतुओं की फिक्र ही नहीं है।