
झुंझुनूं जिले के बाल न्यायालय ने 4 मार्च को बबाई गांव में कक्षा 9 के छात्र गौरव की हत्या के सनसनीखेज मामले में 16 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।

न्यायाधीश दीपा गुर्जर की अदालत ने नाबालिग आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, साथ ही 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह फैसला किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत गंभीर अपराधों के लिए नाबालिगों पर सजा के प्रावधानों के अनुरूप है।
4 मार्च 2021 को बबाई गांव निवासी एक व्यक्ति ने स्थानीय पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज की कि उसका बेटा गौरव, जो गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 का छात्र था, सुबह स्कूल जाने के बाद घर नहीं लौटा। परिवार ने उसकी तलाश शुरू की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। अगले दिन, 5 मार्च 2021 को गौरव का शव गांव के पास एक खदान में पानी में डूबा हुआ मिला। इस घटना ने स्थानीय समुदाय में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ा दी।
पुलिस जांच और गिरफ्तारी
पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच शुरू की। संदेह के आधार पर गांव के ही एक नाबालिग को हिरासत में लिया गया। पूछताछ, गवाहों के बयान, और अन्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने पाया कि नाबालिग ने गौरव की हत्या की। प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई कि दोनों के बीच व्यक्तिगत विवाद था, जिसके चलते नाबालिग ने गौरव की हत्या कर शव को खदान में फेंक दिया। मामला किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) के समक्ष पेश किया गया, लेकिन अपराध की गंभीरता के कारण इसे बाल न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
कानूनी कार्रवाई और साक्ष्य
राज्य की ओर से लोक अभियोजक रामावतार ढाका ने मामले में प्रभावी पैरवी की। उन्होंने अदालत में 24 गवाहों के बयान और 44 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए, जिनमें फोरेंसिक रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान शामिल थे। इन साक्ष्यों ने यह साबित किया कि नाबालिग ने जानबूझकर और नियोजित रूप से गौरव की हत्या की। किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 2(33) के तहत हत्या को गंभीर अपराध (heinous offence) माना गया, जिसमें 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिगों को वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का प्रावधान है।
न्यायाधीश दीपा गुर्जर ने साक्ष्यों का गहन विश्लेषण करने के बाद नाबालिग को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही, 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जिसके भुगतान में विफलता पर अतिरिक्त कारावास का प्रावधान है।
फैसले का महत्व
यह फैसला न केवल पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देता है कि गंभीर अपराध करने वाले नाबालिगों को भी कानून के दायरे में लाया जा सकता है। किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत 16-18 वर्ष के नाबालिग, जो गंभीर अपराध करते हैं, उन्हें वयस्क अपराधी की तरह सजा दी जा सकती है, बशर्ते उनकी मानसिक परिपक्वता और अपराध की गंभीरता का आकलन किया जाए। इस मामले में अदालत ने नाबालिग की मानसिक परिपक्वता और अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सजा सुनाई।