उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग, कम बारिश और बर्फबारी का बताया जा रहा वजह

उत्तराखंड में लगभग 12 महीने ठण्ड का कहर रहा है। वह पूरा पहाड़ी और जंगली जगह है। इस बार का मानसून कमजोर होने के चलते बारिश बहुत कम हुई है वहीं बर्फबारी के चलते ऊंचे पहाड़ों पर सूखे जैसे हालात हो गए हैं। वहीं यह सबसे बड़ा कारण है बहं के जंगलो में आग लगने का, वहीं वन और पर्यावरण के विशेषज्ञों का भी यही मानना हैं।

विशेषज्ञों का कहना है, मार्च-अप्रैल में पतझड़ के बाद ही जंगलों में आग लगती थी। इससे पहले पहाड़ों पर वर्षा और बर्फबारी की वजह से नमी रहती थी जो आग लगने से रोकती थी। मगर इस साल उत्तराखंड में बहुत कम बारिश हुई है, और ऊंची पहाड़ियों पर बर्फबारी भी कम ही मात्रा में हुई है।

इसीलिए अक्तूबर-नवंबर से ही पहाड़ी जंगलों में आग लगी हुई है, जो अब लगभग अनियंत्रित हो चुकी है। सरकार अब हेलिकॉप्टर के जरिए पानी गिराकर बुझाने की कोशिश कर रही है, जिसके सफल होने की संभावना बेहद कम मानी जा रही है।उत्तराखंड के पूर्व प्रमुख वन संरक्षक आईडी पांडे का कहना है कि हेलिकॉप्टर आग बुझाने के लिए अनुपयोगी साबित होगा। एक बार पानी डालने के बाद जब तक हेलिकॉप्टर दूसरी बार टिहरी झील से पानी लेकर आएगा, इतनी देर में आग पहले से ज्यादा भड़क जाती है।

सभी वन अधिकारियों का मानना है कि गर्मी बढ़ने पर लगने वाली आग से बचाव के लिए वनकर्मी आग लगाते हैं। यह ‘कंट्रोल्ड बर्निंग’ ही अनियंत्रित हो गई है। उनके अनुसार, शिकारी पहाड़ी जंगल में नीचे से आग लगाते हैं, जो गर्म हवाओं के सहारे तेजी से ऊपर बढ़ती है।इसे उलट कंट्रोल्ड बर्निंग में आग चोटियों पर लगाई जाती है, जो आराम से नीचे की ओर आती है। मगर मेहनत और पैसे को बचाने के लिए कई बार वन कर्मी नीचे से आग लगा देते हैं, जो सूखी पत्तियों और गर्म हवा के सहारे अनियंत्रित रह जाती है।

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