चार दशक पुरानी है महिला आरक्षण की लड़ाई
नई दिल्ली। सोनिया गांधी ने बृहस्पतिवार को आरक्षण बिल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्टी लिखी थी। जिसमें सोनिया ने लिखा है कि आप को ज्ञात हो कि राज्यसभा ने महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक 9 मार्च, 2010 को ही पारित कर दिया है, मगर लोकसभा से अब तक ये पारित नहीं हो पाया है। बार-बार विवादों की वजह से ये बिल लटक जा रहा है। ऐसे में लोकसभा में आपकी पार्टी के पास बहुमत होने की वजह से इस विधेयक को पास कराना चाहिए।
बता दें कि 2010 में महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से पास होने के बाद भी लोकसभा में पेश नहीं हो सका है। यह बिल बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों के विरोध के कारण यह पास नहीं हो सका। इसकी वजह से दलित, पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग हो रही है। इसी वजह से यह बिल अभी तक अधर में लटका हुआ है।
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वहीं खबर हैं कि सोनिया गांधी की चिट्टी के बाद बीजेपी सरकार इस तीसरे सत्र में महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में ला सकती है।
वैसे ये पहला मौका नहीं है जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी हो इससे पहले भी उन्होंने दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार की घटनाओं पर चिंता जताई थी और इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए विधेयक लाने की मांग की थी।
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जानिए महिला आरक्षण का इतिहास-
-वर्ष 1974- संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा भारत में महिलाओं की स्थिति के आकलन संबंधी समिति की रिपोर्ट में पहली बार उठाया गया था। राजनीतिक इकाइयों में महिलाओं की कम संख्या का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया।
-1993- संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतों तथा नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गईं।
-12 सितंबर 1996 – महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार एचडी देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया। इसके बाद ही देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया।
-विधेयक को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया। इस समिति ने नौ दिसंबर 1996 को लोकसभा को अपनी रिपोर्ट पेश की।
-26 जून 1998- अटल बिहारी वाजयेपी के नेतृत्व वाली NDA की सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया, लेकिन पास नहीं हो सका।
इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली NDA सरकार अल्पमत में आ जाने से गिर गई और 12वीं लोकसभा भंग हो गई।
-22 नवम्बर 1999- दोबारा सत्ता में लौटी NDA सरकार ने 13वीं लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक को एक बार फिर पेश किया, लेकिन इस बार भी सरकार इस पर सभी को सहमत नहीं कर सकी।
-वर्ष 2002 और 2003 में भी बीजेपी नेतृत्व वाली NDA सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पेश किया, लेकिन कांग्रेस और वामदलों के समर्थन के आश्वासन के बावजूद सरकार इस विधेयक को पारित नहीं करा सकी।
-मई 2004- कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के इरादे का ऐलान किया।
-6 मई 2008- महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पेश हुआ और उसे कानून एवं न्याय से संबंधित स्थायी समिति के पास भेजा गया।
-17 दिसंबर 2009- स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की और समाजवादी पार्टी, जेडीयू तथा आरजेडी के विरोध के बीच महिला आरक्षण विधेयक को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा गया।
-22 फरवरी 2010- तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद में अपने अभिभाषण में कहा था कि सरकार महिला आरक्षण विधेयक को जल्द पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
25 फरवरी 2010- केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण विधेयक का अनुमोदन दिया।
-08 मार्च 2010- महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा के पटल पर रखा गया, लेकिन सदन में हंगामे और एसपी और राजद द्वारा UPA से समर्थन वापस लेने की धमकी की वजह से उस पर मतदान नहीं हो सका।
-09 मार्च 2010- कांग्रेस ने बीजेपी, जेडीयू और वामपंथी दलों के सहारे राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से पारित कराया।