इस ‘शेरनी’ की दहाड़ से कांप उठता है वन माफिया, दशकों से कर रही है रक्षा

झारखंड। झारखंड के जमशेदपुर में 100 हेक्टेयर में फैले जंगल की रक्षक बनी ये शेरनी जब दहाड़ती है तो बड़े-बड़े माफियाओं की सांसे थम जाती हैं। अपने जंगल की रक्षा के लिए वह कई बार जान की बाजी लगा चुकी हैं। वन संरक्षण की इस हैरतअंगेज मुहिम में यह आदिवासी युवती गत एक दशक से सक्रिय है। उन्होंने इसे अभियान बना दिया है। स्थानीय लोग अब उन्हें ‘जंगल की शेरनी’ कहते हैं। वन माफिया उनके नाम से थर-थर कांपता है। झारखंड के जमशेदपुर में 100 हेक्टेयर में फैले जंगल की रक्षक बन गई हैं कांदोनी सोरेन।

लेडी टारजन से कम नहीं

स्थानीय लोग बताते हैं कि घने जंगलों में कांदोनी की तेजी देखने लायक होती है। जिस सरलता से वह पेड़ों और पहाड़ों पर चढ़ती हैं, मानो जंगल, पेड़ और पहाड़ ही उनकी जिंदगी है। जंगल की इस शेरनी की बुलंद दहाड़ से लकड़ी माफिया भाग खड़ा होता है।

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पारंपरिक हथियारों से रहती हैं लैस

जब वह अपनी टीम के साथ पारंपरिक हथियारों तीर-धनुष, कटारी आदि लेकर जंगल में निकलती हैं, तो वन माफिया भाग खड़े होने में ही भलाई समझता है। माफिया को यह डर हमेशा बना रहता है कि कांदोनी अपनी टीम के साथ कभी भी पहुंच सकती हैं। फिर उसकी खैर नहीं। चोरी-छिपे लकड़ी काटने वाले भी दुम दबाकर भाग जाते हैं। वन की रक्षा के लिए तेज चाल से पहरा देना, जंगल में दूर-दूर तक नजर रखना, वन माफिया पर काबू पाना, यह अब कांदोनी की दिनचर्या में शामिल है।

बनाई 45 महिलाओं की टीम

जमशेदपुर शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर मुसाबनी प्रखंड की पूर्वी मुसाबनी पंचायत में सड़कघुटू गांव है। यहां एक साधारण आदिवासी परिवार की यह बेटी वन संरक्षण में पिछले दस साल से अहम योगदान दे रही है। इस काम में कांदोनी ने गांव की अन्य महिलाओं को भी जोड़कर वन सुरक्षा समिति बनाई है। समिति में अब 45 समर्पित महिलाएं हैं, जो कांदोनी के साथ करीब 100 हेक्टेयर मे फैले जंगल की रक्षा के लिए दिन-रात तत्पर रहती हैं।

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अटूट समर्पण बना प्रेरक उदाहरण

वन की अहमियत वनवासी से बेहतर कोई क्या जानेगा। जंगल ही इनका जीवन है। लेकिन, आज न केवल जंगल, बल्कि वनवासियों का जीवन भी अंधाधुंध आधुनिकीकरण की चपेट में है। ऐसे में इस आदिवासी युवती का अपने जंगल की रक्षा को लेकर अटूट समर्पण प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करता है। कांदोनी कहती हैं, हमारा यह जंगल पहले बहुत घना था, लेकिन वन माफिया ने इसे बहुत नुकसान पहुंचाया। हम इसे बचाने में हरसंभव सहयोग कर रहे हैं। केवल सरकार व सिस्टम के भरोसे यह काम संभव नहीं है। स्थानीय लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

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