
नई दिल्ली। परम्परागत रूप से मंदिर की पूजा आराधना करने के बाद हम देवी-देवताओं या मंदिर की परिक्रमा करते है। यह परम्परा कई सालो से ऐसे ही चली आ रही है फिर भी अधिकांश लोग बिना इसकी महात्व जाने मंदिर की परिक्रमा करते हैं। तो चलिए जानते है कि क्यों की जाती है मंदिर की परिक्रमा-
धर्म ग्रंथो के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा अनिवार्य है क्योंकि इसके पीछे न केवल मान्यता बल्कि वैज्ञानिक मान्यता भी है।
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देवी-देवताओं के पूजा के बाद मंदिर की परिक्रमा एक तय संख्या में ही की जानी चाहिए, बिना विधि-विधान के की गई पूजा एंव परिक्रमा के कारण फल प्रप्ति में कमी आ सकती है।
किसी मंदिर की परिक्रमा करना हमारे लिए बेहद गुणकारी तथा लाभकारी सिध्द होती है। मंदिरो मे सकारात्मक ऊर्ज़ा होती हैं और जब हम इसकी परिक्रमा करते हैं,तब वह ऊर्ज़ा हमारे शरीर में स्थानांतरित (टरान्सफरड) होती है। जिसके कारण हमे साकारात्मक ऊर्ज़ा प्राप्त होती है।
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परिक्रमा करने का सही नियम –
जिस तरफ घड़ी की सुई घूमती है उसी दिशा की तरफ परिक्रमा करना चाहिए। विपरीत दिशा की तरफ परिक्रमा करने पर हमे परिक्रमा का कोई लाभ नही मिलता। परिक्रमा का लाभ यह है की हमारे अंदर साकारात्मक ऊर्ज़ा बढ जाएगी और नाकारात्मक उर्ज़ा का नष्ट होना आरम्भ हो जाएगा। यह ऊर्ज़ा हमे इश्वर से सदा जोडे रखती है।