हिंदी में पिरोए हिंदुस्तान के लिए आखिर क्यों है 14 सितंबर खास

हिंदी दिवसनई दिल्ली। आज हम आपको बताने जा रहे हैं अपनी मातृभाषा यानी की हिंदी के बारे में। जिसे शायद अधिकतर लोग भूल से चूके हैं।

या फिर यूं कहे की उन्हें अपनी मातृभाषा बोलने में ही शर्म आती है। आज 21 वीं सदी में लोगों को ज्यादा शिक्षत उनकी मातृभाषा से नहीं बल्कि उनके अंग्रेजी के अनुवाद के दम पर माना जाता है।

लेकिन शायद वो भूल रहें है कि भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन ही नहीं बल्कि उसमें इतिहास और मानव विकास क्रम के कई रहस्य छिपे होते हैं।

बोली के नष्ट होने के साथ ही जनजातीय संस्कृति, तकनीक और उसमें अर्जित बेशकीमती परंपरागत ज्ञान भी तहस-नहस हो जाता है।

जानिए कब और क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस-

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। पहली बार 1953 में हिन्दी दिवस मनाया गया था। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में दर्शाया गया है कि संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।

संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण हिंदी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। लेकिन जब राजभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिंदी भाषा राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे जिसके बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया।

संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी।

हांलाकि यह दुखद है कि हजारों सालों से बनी एक भाषा, एक विरासत, उसके शब्द, उसकी अभिव्यक्ति, खेती, जंगल, इलाज और उनसे जुड़ी तकनीकों का समृद्ध ज्ञान, उनके मुहावरे, लोकगीत, लोक कथाएं एक झटके में ही खत्म होने लगी हैं।

हमें यदि हिंदी भाषा को संजोए रखना है तो इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। सरकारी कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी। तभी हिंदी भाषा को जिंदा रखा जा सकता है।

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