खुलासा : सर्जिकल स्ट्राइक में मुंह की खा जाते पीएम मोदी, एक भी भारतीय जवान न लौटता जिंदा
नई दिल्ली। भारतीय सेना के जवानों द्वारा बीते साल सितम्बर में किये गये सर्जिकल स्ट्राइक में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। इस ऑपरेशन में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 50 से अधिक आतंकियों को भारतीय जवानों ने मार गिराया था। लेकिन यह काम कितना मुश्किल था, इसका अंदाजा लगाना भी आसान नहीं।
देश के जवानों ने जान पर खेलते हुए इस सर्जिकल स्ट्राइक को सफल बनाया था। इस ऑपरेशन की अगुवाई करने वाले सेना के एक मेजर ने उस रात के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें कई भारतीय सैनिकों की जान भी जा सकती थी।
खास बात यह रही कि इस ऑपरेशन में एक भी भारतीय सैनिक की जान नहीं गई लेकिन वहां से निकलते समय पाकिस्तान की तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई थी। ऐसी स्तिथि में जवानों ने सूझ-बूझ और साहस का परिचय दिया और आगे बढ़ते रहे।
सेना के मेजर के मुताबिक, ‘फायरिंग में निकलते समय कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी, चारो तरफ से गोलियों की बौछार हो रही थी। एक गोली तो मेरे कान को छूकर भी निकली’।
मेजर ने सुनाई उस रात की कहानी
पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल पूरे होने पर प्रकाशित किताब ‘इंडियाज मोस्ट फीयरलेस’: ‘ट्रू स्टोरीज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हीरोज’ में मेजर माइक टैंगो ने चौंका देने वाले मिशन से जुड़े अपने अनुभव को साझा किया है. इसमें सर्जिकल स्ट्राइक की 14 कहानियों को शामिल किया गया है।
बता दें कि इस किताब को राहुल सिंह और शिव अरूर ने लिखा है, जिसे पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित किया है। ये किताब जवानों के साहस और पराक्रम के बारे में बताती है।
मेजर के मुताबिक, ‘सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उरी आतंकी हमले में नुकसान झेलने वाले यूनिटों के जवानों के इस्तेमाल का निर्णय किया। इसके लिए एक टुकड़ी का गठन किया गया और उसमें उन दो यूनिट के सैनिकों को शामिल किया गया था, जिन्होंने उरी आतंकी हमले में अपने जवान खोये थे।
किताब में कहा गया है कि रणनीतिक रूप से यह सूझ-बूझ से उठाया गया कदम था। वहां की जमीनी हालात की जानकारी उनसे बेहतर शायद ही किसी जवान के पास थी। उसमें साथ ही कहा गया है कि उनको मिशन में शामिल करने का मकसद उरी हमलों के दोषियों के खात्मे की शुरुआत भी था, जिसकी अगुवाई मेजर टैंगो को सौंपी गई थी।
बता दें हमले के बाद वापस लौट रही भारतीय जवानों की भनक पाकिस्तानी सेना को लग गई।
किताब में मेजर ने बताया कि पाकिस्तानी सेना के हमले से हमारे कमांडोज बिल्कुल भी नहीं घबराए, लेकिन LOC पर चढ़ाई वाले रास्ते को पार करना बहुत ही कठिन था। वहीं जवानों के पीछे से पाकिस्तानी सैनिक गोलीबारी कर रहे थे। भारतीय जवान उनके सीधे टारगेट पर थे।
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बता दें किताब के अनुसार सेना को लीड कर रहे टैंगो ने ही पूरी टीम का गठन किया था। उन्हें इस बात का पूरा ज्ञान था कि 19 लोगों की जान बहुत हद तक उनके हाथों में है। इस वजह से जवानों की सकुशल वापसी को लेकर मेजर थोड़े चिंतित जरुर थे। किताब में बताया गया है कि उन्हें डर था कि मैं जवानों को खो न दूं।
किताब में बताया गया है कि भारतीय टीम ने मास्क्ड कम्यूनिकेशन के जरिए सीमा पार 4 लोगों से संपर्क साधा, जिसमें पाक के 2 नागरिक और PoK के 2 ग्रामीण शामिल थे, जिन्हें भारतीय सेना ने ही आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद में शामिल करवाया था। इन्हें कुछ साल पहले भारतीय एजेंसियों ने वापस भेज दिया था।
किताब के मुताबिक चारों सूत्रों ने उनको सौंपे गए टारगेट के बारे में अलग-अलग जानकारी दी।
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ख़बरों के मुताबिक जब भारतीय सैनिकों ने इन आतंकवादियों पर हमला शुरू किया तो, वे पाकिस्तानी चौकी की तरफ भागते देखे गए थे. इससे यह बात स्पष्ट होती है कि लश्कर के इन आतंकियों को पाकिस्तानी सेना से कोई खतरा नहीं था।
वहीं भारत की ओर से हमला होने के बाद दो पाकिस्तानी सैनिक लॉन्च पैड की सुरक्षा में जुट गए थे, लेकिन हमले में वे भी मारे गए। पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देता है ये बात किसी से छुपी नहीं है। ये बात और भी पुख्ता हो जाती है, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकियों को बचाने के बहाने भारतीय जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी थी।