पेट्रोल-डीजल पर बढ़ीं सरकार की धड़कनें, 56 इंच का सीना हुआ फेल, मिला वो जवाब जिसकी न की थी उम्मीद

पेट्रेल और डीजल पर बढींमुंबई। पेट्रेल और डीजल की कीमतों में आने वाली तेजी आम लोगों के लिए बड़ा सर दर्द बन रही है। आदमी की कमाई का अमूमन हिस्सा महज आने-जाने में खर्च हो रहा है। इस मुद्दे पर जोर देते हुए शिवसेना ने केंद्र सरकार को जमकर निशाने पर लिया है। वजह, कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी के बावजूद पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम। किसानों का मुद्दा उठाते हुए शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में इन बढ़ती कीमतों को अन्नदाता की आत्महत्या की वजह बताया। साथ ही केंद्रीय मंत्री कन्ननथानम के केंद्र और बढ़े दामों के पक्ष में दिए गए हालिया बयान पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाए जाने पर शिवसेना ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है। शिवसेना ने कहा, “क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी के बावजूद तेल पेट्रोल की कीमतें बढ़ी हुई हैं। क्या ऐसा बुलेट ट्रेन के लिए जापान से लिए गए लोन का इंट्रेस्ट चुकाने के लिए किया गया है?’

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दो दिन पहले ही शिवसेना ने कहा था, “पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें हीं देश में किसानों के सुसाइड की बड़ी वजह हैं।”

सामना के एडिटोरियल में लिखा गया, “जो लोग सरकार में बैठे हुए हैं, वो महंगाई पर बात नहीं करना चाहते हैं और ना ये चाहते हैं कि दूसरे इस पर बात करें। फ्यूल प्राइस सिर से ऊपर गुजर गया है और आम आदमी को इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर सरकार में बैठे लोग 4 महीनों में 20 बार बढ़े दामों का सपोर्ट कर रहे हैं तो ये सही नहीं है।”

इससे पहले शिवसेना ने अल्फोंस कन्ननथानम के बयान की निंदा की थी। शिवसेना ने कहा था, “यूनियन मिनिस्टर कन्ननथानम का बयान गरीबों और मिडल क्लास लोगों की इनसल्ट है। जिनके पास कोई योग्यता नहीं है और लोगों से कोई कनेक्शन नहीं है, वे देश को चला रहे हैं।”

सामना में लिखा गया, “यूपीए सरकार के वक्त क्रूड ऑयल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल थी। इसके बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतें 70 रुपए और 53 रुपए प्रतिलीटर से ज्यादा कभी नहीं बढ़ीं। इसके बावजूद अपोजिशन ने सड़कों पर प्रोटेस्ट किया था और संसद को भी डिस्टर्ब किया।

आज क्रूड की कीमतें 49.89 डॉलर्स प्रति बैरल है। लेकिन, लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है। इसकी जगह पेट्रोल आझ 80 और डीजल 63 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है। ये लोगों को लूटने के जैसा है।”

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केंद्रीय मंत्री अल्फोंस कन्ननथानम ने 16 सितंबर को कहा था, “सरकार टैक्स इसलिए लगा रही है ताकि गरीब अच्छी जिंदगी जी सकें। पेट्रोल डीजल कौन खरीदता है? ऐसा शख्स जिसके पास कार हो, बाइक हो। निश्चित रूप वो भूखे नहीं हैं।”

वहीं बीते समय पर गौर करें तो 12 नवंबर 1973 को पेट्रोल और केरोसिन के दाम बढ़ाए जाने के विरोध में अटल बिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी से संसद पहुंच गए थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और अटल बिहारी वाजपेयी लीडर ऑफ अपोजिशन।

पेट्रोल-डीजल की कीमत 3 साल के हाईएस्ट लेवल पर पहुंच चुकी है। बुधवार (13 सितंबर) को मुंबई में पेट्रोल 79.48 रु. और दिल्ली में 70.38 रु. लीटर बिका।

इससे पहले एक अगस्त 2014 को मुंबई में पेट्रोल की कीमत 80.60 और दिल्ली में 72.51 रु. रही थी. सरकार की स्कीम के मुताबिक, 16 जून से पेट्रोल-डीजल के दाम रोज बदल रहे हैं। तब से पेट्रोल 7.48% और डीजल 7.76% महंगे हो चुके हैं। लेकिन सरकार का कहना है कि वह इसमें दखल नहीं देगी।

इस तरह का रवैया केंद्र सरकार की क्रियाशीलता और कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जरूरी तो नहीं कि जिसके पास कार और बाइक हो वह धनाड्य ही है।

इस बात पर यकीनन केंद्रीय मंत्री कन्ननथानम को विचार करने की आवश्यकता है कि आज बाइक और कार का होना स्टेट्स सिंबल नहीं बल्कि मूल आवश्यकता है। कंपनियों की किस्तों की पॉलिसी ने इन्हें अपना बनाना और भी आसान बना दिया है।

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