गर्भावस्था के दौरान इस चीज का रखें ध्यान, वर्ना ये 3 बीमारियां जन्म से ही लग जाती हैं पीछे

अक्सर कुछ बीमारियां बच्चों में जन्मजात ही होती हैं। जो बच्चें के जन्म लेने के बाद उसके हमेशा बीमार बने रहने के कारण ही बनती हैं। यह बीमारियां दोनों ही रूपों में हो सकती हैं मानसिक भी और शारीरिक भी। इसमें अधिकतम असमानताएं तंत्रिका नाल की विकृति से संबंधित होती है, जिसे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट कहा जाता है।

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अमस्तिष्कता

यह सबसे गंभीर समस्या है। भारत में अधिकांश लड़कियां ही इस बीमारी के साथ जन्म लोती हैं। भारत में इस बीमारी के साथ जन्म लेने वाले शिशुओ की संख्या करीब 1000 है। इस बीमारी सिर के ऊपर की हड्डी नहीं होती है। एड्रिनल ग्रंथियां क्षतिग्रस्त रहती हैं,ऐसे में शिशु का बचा पाना बेहद कठिन हो जाता है। देखा गया है कि ज्यादातर ऐसे बच्चे जन्म के बाद कुछ ही पल जीवित रह पाते हैं।

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हाइड्रानेसिफेली

इस विकृति में शिशु का सिर असामान्य रूप से बड़ा होता है। मस्तिष्क के वेंट्रिकल्स में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव की मात्रा अधिक होने से सिर की हड्डियां पतली हो जाती हैं, जो दिमागी विकलांगता का कारण बनता है। इनके अलावा भी कई विकृतियां हैं, जो जन्म से पाई जाती हैं जैसे विकृत होंठ व तालु। हर वर्ष सात से 8000 बच्चे इस विकृति के साथ जन्म लेते है। गर्भावस्था के आरंभिक दौर में कुछ वायरस के संक्रमण से बच्चे में जन्मजात विकृति पैदा हो जाती है इन जन्मजात विकृतियों में बहरापन, मोतियाबिंद, हृदय संबंधी रोग व मानसिक रूप से अक्षमता शामिल है ।

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स्पाइना बाइफिडा

यह एक गंभीर समस्या है जो भारत के तकरीबन 1,500 बच्चों में पाई जाती है। जब बच्चा जन्म लेता हैं तो उसकी रीढ़ का हड्डी दो भागों में बंटी हुई होती है मतलब कि उसमें दरार होती है। इतना ही नहीं कभी-कभी स्पाइनल कॉर्ड भी बीहर की तरफ निकली हुई होती है। इसके कारण ही जहां पर दरारा होती है वहां के आस-पास की मांसपेशी कमजोर हो जाती हैं।

कारण

अनुवांशिक या वंशानुगत कारण

वातावरण संबधी कारण

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बचाव

गर्भधारण से पहले छोटी चेचक व रूबेला का टीका अवश्य लगवा लें। 12 से 15 माह की उम्र के दौरान एमएमआर का टीका लगाया जाता है गर्भवती महिला को रूबेला का वैक्सीन नहीं दिया जाता ।

गर्भावस्था के दौरान किसी भी दवा का सेवन बिना डॉक्टरी सलाह के न लें। कोई भी दवाई लेने में अत्यधिक सावधानी रखें।

यदि महिला मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, आदि से पीड़ित हो तो गर्भधारण से पहले ब्लड शुगर को नियंत्रित रख कर शिशु की जन्मजात विकृति को रोका सकता है, लेकिन इससे पहले आप अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लें।

गर्भधारण से पहले ही पौष्टिक खाना खाने की आदत डालें। फल, सूखे मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां, डेयरी उत्पाद भोजन में शामिल करें। जंक फूड लेने से बचें।

गर्भावस्था से पहले व गर्भावस्था के शुरुआती चरण में फॉलिक एसिड का सेवन करने से विकारग्रस्त शिशु होने की आशंका कम रहती है।

गर्भावस्था के आरंभिक हफ्ते में एक्सरे से बचें। इससे भ्रूण पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है, शुरुआती चार महीनो में एक्सरे करवाने से बचें।

हायपर या हाइपो थायरॉयड के मरीजों को भी गर्भधारण करने से पहले डॉक्टरी परामर्श लेना जरूरी है ।

 

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