कर्नाटक में राजनीतिक हलचलें तेज, चुनावी आहट के बीच छिड़ा धर्मयुद्ध!

नई दिल्ली: कर्नाटक में चुनावी बयार अब तेज हो चुकी हैं. कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस के बीच राजनीतिक टकराव से ज्यादा साख की लड़ाई बनती नजर आ रही है. एक ओर बीजेपी कर्नाटक में कांग्रेस का सफाया कर कांग्रेस मुक्त भारत के सपने की तरफ एक और कदम बढाने की फिराक में है वहीं कांग्रेस अपने गढ़ से मोदी की सियासी लहर पर लगाम लगाने के मौका तलाश रही है. जनता में चर्चा जोरों पर है कि सरकार ने कोई मन्दिर बनवाए हों या नहीं पर मन्दिरों ने सरकार बचाने और बनाने में हमेशा अहम योगदान दिया है.राहुल

राजनीति के मैदान में ये नया धर्मयुद्ध छिड़ा है. ये नया धर्मयुद्ध है जिसमें कांग्रेस और बीजेपी के लिए नया कुरुक्षेत्र कर्नाटक बना है. ये धर्मयुद्ध है जिसमें बीजेपी तमाम राज्यों को जीतते हुए अपने अश्वमेध के घोड़े को कर्नाटक में भी दिग्विजयी बनते देखना चाहती है.

ये धर्मयुद्ध मंदिरों के चक्कर काट रहा है और इस कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को बिल्कुल परंपरागत तरीके से श्रृंगेरी मठ पहुंचे. इस मठ की स्थापना जगतगुरु शंकराचार्य ने की थी. राजनीति अगर धर्म पर खेली जाए तो उसका अहम हथियार परंपराओं में लिपटी वेशभूषा भी बन जाता है. चिकमंगलूर के श्रृंगेरी शरदंबा मंदिर में जब राहुल पहुंचे तो परंपरागत भक्त के परिधान में. पुजारी के साथ चलते गए. रीति रिवाजों और मंदिर के इतिहास से रूबरू होते, भगवान की कृपा की चाहत लिए हुए.

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गौरतलब हो कि इस श्रृंगेरी मठ का नेहरू गांधी परिवार से काफी पुराना नाता है. इंदिरा गांधी जब 1977 में इमरजेंसी के साये में बुरी तरह हार गईं थी तो एक साल बाद चिकमंगलूर से चुनाव लड़ने गईं. तब वो इस श्रृंगेरी मठ में आई थीं. उस चुनाव में कांग्रेस ने नारा उछाला- चिकमंगलूर चिकमंगलूर…एक शेरनी सौ लंगूर…इंदिरा वहां से चुनाव जीतीं और दो साल बाद 1980 में दोबारा सत्ता पर कब्जा कर लिया.इंदिरा के बाद राजीव गांधी भी श्रृंगेरी मठ आए थे और अब राहुल. मंगलवार को जब राहुल गांधी कर्नाटक की यात्रा पर पहुंचे तो पहले दिन ही कई धार्मिक यात्रा पर निकले.

10 राज्यों में चुनाव हार चुकी कांग्रेस की कर्नाटक के चुनावी बिसात में हर चाल बेहद सधी हुई है. इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हर धार्मिक केंद्र पर मत्था टेक रहे हैं. राहुल के चुनावी दौरे में शनिवार को भी मंदिर दर्शन शामिल है. ये नवरात्र का समय चल रहा है इसलिए वो मैसूर में मां चामुंडेश्वरी देवी के मंदिर में जाएंगे.

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बीजेपी की हिंदुत्व वाली राजनीति के जवाब में कांग्रेस अपनी सेकुलर छवि भी बनाकर रखना चाहती है लेकिन साथ ही हिंदुओं को ये पैगाम भी देना चाहती है कि उसकी हिंदू विरोधी बनाई गई छवि गलत है. गुजरात के चुनाव में जमाने ने राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घूमते देखा, कांग्रेस वहां जीत भले नहीं पाई लेकिन उम्मीदों का एक आसमान जरूर खड़ा लिया.

चाहे उनकी यात्रा निजी हो और इसमें कांग्रेस का कोई लेना देना ना बताया जाता है लेकिन देश के एक बड़े राजनीतिक दल के सर्वोच्च नेता का निजी भी राजनीति में गुंथा होता है, इस बात को न ही राहुल नकार सकते हैं न ही उनके विरोधी.

देखना दिलचस्प है कि सियासी हाशिए पर पहुंचती कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण कहाँ से प्रज्ज्वलित होती है.

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