राजनीति का पहला ‘चाणक्य’ जिसे भाजपा का ‘लक्ष्मण’ कहा जाता था!

अमित विक्रम शुक्ला

भारत में चुनावों को ‘राजनीतिक पर्व’ के रूप में देखा जाता है। बस इसमें खटाई तब पड़ जाती है। जब इस पर्व में स्वार्थ की भावना खुल कर सामने आ जाती है। वो ‘राजनीतिक स्वार्थ’ चाहे नेता की कृपा में हो। या जनता की भक्ति में।

वैसे तो चुनावी कोहरे के छटने के बाद जनता भी समझ चुकी होती है कि एकबार फिर से जनहित का राग अलाप कर उन्हें उसी खाई में धकेल दिया गया है। जहां से निकलने में उन्हें पूरे पांच साल लग जाते हैं।

खैर इस चुनावी पर्व के ऊपर विराम लगाते हैं। और बात करते हैं। उस राजनेता की जिसकी सियासी समझ ने, न सिर्फ जनता का भला किया। बल्कि पार्टी को भी मज़बूत किया। अपने ‘चाणक्य’ के उपनाम के साथ चौतरफा ईमानदारी के साथ पेश आया। और पार्टी ने जहां भी भेजा किला फतेह करके ही लौटा।

मराठी अखबार तरुण भारत

जी हाँ… आज हम बात करेंगे भारतीय जनता पार्टी के ‘लक्ष्मण’ और राजनीति के पहले ‘चाणक्य’ के बारे में जिनका नाम है। प्रमोद महाजन। ये वही नाम है। जिसकी 90 के दशक में ऐसी आंधी चली कि विरोधियों के सियासी तम्बू उखड़कर बड़ी दूर जा गिरे।

राजनीति से करीबी रिश्ता रखने वाला कोई भी व्यक्ति प्रमोद महाजन की सियासी किस्सों के बाद की हंसी और पराजय के बाद का उदास चेहरा (जिसपर थोड़ी-थोड़ी देर में सत्ता वापसी की उम्मीद भरी मुस्कान भी दिख जाती थी) कभी नहीं भूल पायेगा।

वैसे तो उस समय भाजपा के पास ऐसे कुशल वक्ताओं की फ़ौज थी, जिसको सुनने के बाद श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। उन्ही में एक प्रमोद महाजन भी थे।

शुरूआती जीवन

प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना के महबूब नगर इलाके में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। महाजन ने पत्रकारिता की पढाई की थी।प्रमोद महाजन और गोपीनाथ नाथ मुंडे महाराष्ट्र के अम्बाजोगाई इलाके में स्थित स्वामी रामानंद कॉलेज में साथ पढ़ते थे।

प्रमोद महाजन

प्रमोद संघ के मराठी अखबार तरुण भारत से बतौर सब एडिटर 1970 में जुड़े थे।

राजनीतिक सफरनामा

प्रमोद महाजन एक लंबी राजनीतिक यात्रा तय करने वालों नेताओं में थे। उनकी राजनीतिक पदयात्रा का पहला बड़ा पड़ाव 1986 में आया। जब उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

अपने इसी कार्यकाल में उन्होंने राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। और यह राजनीति के दिलचस्प मोड़ ही रहा कि उन्हीं राजनाथ की अध्यक्षता में वह पार्टी के महासचिव का पद संभाल रहे थे।

प्रमोद महाजन

लेकिन इस बीच उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक सलाहकार से लेकर संचार मंत्री और संसदीय कार्यमंत्री तक कई ज़िम्मेदारियाँ निभाईं।

प्रमोद महाजन

प्रमोद महाजन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक थे। प्रमोद महाजन अपने गृहराज्य महाराष्ट्र और भारत के पश्चिमी क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय थे।

महाजन कहने को तो भारतीय जनता पार्टी के महासचिव थे। लेकिन वे पार्टी के सबसे हाईप्रोफ़ाइल नेताओं में से एक थे। प्रमोद महाजन भाजपा की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में सबसे सक्रिय थे और देश भर में पार्टी के सबसे जाने पहचाने चेहरे भी थे।

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यही नहीं महाजन साहब भाजपा के सबसे बड़े आयोजनकर्ता थे और पार्टी के लिए चंदा जुटाने में माहिर नेता माने जाते थे।

जब हार का ठीकरा महाजन के सिर फूटा…

2004 में समय से पहले चुनाव करवाने के फ़ैसले में प्रमोद महाजन की अहम भूमिका थी. और उन्ही के हाथों में भाजपा के हाईटेक प्रचार कार्य की बागडोर भी थी। बाद में जब कहा गया कि हाईटेक प्रचार और ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसे नारों से पार्टी और एनडीए को नुक़सान हुआ, तो हार का ठीकरा प्रमोद महाजन के सिर ही फूटा।

प्रमोद महाजन

वैसे अपनी पीढ़ी के दूसरे नेताओं के साथ शीतयुद्ध के कारण भी वे ख़ासे चर्चा में रहे। कभी अटल बिहारी वाजपेयी के प्रिय दिखने वाले प्रमोद महाजन को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के मन में ये सवाल भी उठता रहा कि वे उसी समय लालकृष्ण आडवाणी के क़रीबी की तरह कैसे दिख सकते हैं।

प्रमोद महाजन

दिसंबर 2005 में भाजपा की रजत जयंती का आयोजन भी प्रमोद महाजन के ज़िम्मे था। इसी आयोजन के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ‘लक्ष्मण’ होने का ख़िताब दिया।

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प्रमोद महाजन को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी का ‘लक्ष्मण’ कहा। ये और बात है कि उसी समय वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का ‘राम’ बताया था।

प्रमोद महाजन

और उसी समय से चर्चा चल पड़ी कि प्रमोद महाजन कभी भी पार्टी के अध्यक्ष बन सकते हैं। हालांकि, ख़ुद प्रमोद महाजन वाजपेयी के उस बयान का अर्थ इस तरह नहीं लगाना चाहते थे। राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद महाजन को हमेशा एक लंबी रेस का घोड़ा मानते थे।

निधन

प्रमोद महाजन को उनके मुंबई स्थित निवास पर शनिवार 22 अप्रैल, 2006 की सुबह कथित रूप से उनके भाई ने ही गोली मार दी। उन्हें मुंबई के ही हिंदूजा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहाँ उनका ऑपरेशन किया गया। 3 मई, 2006 को इनका निधन हो गया।

प्रमोद महाजन

अपनी मौत से पहले राज्यसभा के सदस्य प्रमोद महाजन की कार्यभूमि मुंबई ही रही और यहीं से वे लोकसभा सदस्य रहे।

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