सूबे की वो दलित मुख्यमंत्री जिसके चुनावी नारों ने बढ़ा दिया सियासी पारा!

अमित विक्रम शुक्ला

राजनीति में मुद्दे चाहे बड़े हों या छोटे। बस जरूरत होती है, तो सिर्फ जमीनी स्तर पर सियासी पकड़ रखने वाले नेतृत्व की। जोकि कम-से-कम जनता को उनके हित के लिए अपनी बात को समझाने में कामयाब हो सकें। क्योंकि आजकल की 90 फीसदी राजनीति और जनहित की बातें। बस चंद शब्दों के साथ सोशल मीडिया के आकाश में तैरती भर रह जाती हैं।

वैसे तो राजनीति में, खासतौर से भारतीय राजनीति में जाति का बहुत बड़ा खेल रहा है। भारत एक ऐसा देश है। जहां हम अपनी जाति-मजहब के आधार पर सरकार चुनने का बेड़ा उठाते हैं। क्योंकि हमें काम नहीं, विकास नहीं। बस अपने जातिवाद से मतलब होता है।

यहां अम्बेडकर की मूर्ति टूटने से दलित समाज खतरे में आ जाता है। लोहिया के विचारों के नीचे राजनीतिक किलेबंदी शुरू हो जाती है। गोडसे और गांधी के लिए भाजपा-कांग्रेस के समर्थक आमने-सामने आ जाते हैं। ‘आम आदमी’ नाम रखकर पार्टी में ख़ास लोगों को तवज्जों दी जाती है। ये सब देखने के बाद भी हम चुप रहते हैं। क्योंकि हमें काम से नहीं जातिवाद से मतलब है।

जब राजनीति सामाजिक सद्भावना से हटकर जातिवाद पर जा टिके। तो समझ लेना देश प्रगति नहीं बल्कि गर्त की तरफ चल पड़ा है। और इसके भागीदार हम सभी हैं। लेकिन आज भी कई समाज विशेष का कार्यभार कुछ नेताओं ने उठा रखा है। जिन्हें समाज विशेष का ‘मसीहा’ करार दिया जाता है।

आज हम बात करने जा रहे हैं। उस नेता की। जिसकी आँखों में आईएएस बनने का ख्वाब था। दलित समाज के लिए कुछ कर गुजरने की चाह थी। देश की उन्नति के लिए दिन-रात मेहनत करने का जज्बा था। लेकिन ऐसा क्या हो गया कि जिन आंखों ने अधिकारी बनने के सपने देखें। उसके सामने अधिकारी खुद ही नतमस्तक होने लग गये।

अगर अबभी आप नहीं समझे, तो हम आपको बता देते हैं कि आज हम बात करने जा रहे हैं। देश के सबसे बड़े सूबे की मुखिया यानी मुख्यमंत्री चंदावती देवी उर्फ़ मायावती की।

ये नाम पहली बार तो कांशीराम ने सुना। लेकिन उसके बाद देश और प्रदेश की समूची जनता ने सुना। वजह कांशीराम की बातों से प्रभावित होकर जनसेवा के लिए राजनीति की तरफ अपना रुख मोड़ लेना।

चंदावती देवी उर्फ़ मायावती

वैसे तो सभी को पता है कि मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दलित समाज के लिए कई बड़े काम किये। जिनके बलबूते दलित समाज को भी अपने होने का एहसास हुआ। लेकिन मुख्यमंत्री से पहले और मुख्यमंत्री बनने के बाद तक का सफ़र मायावती ने कैसे तय किया। आज हम इसी के बारे में चर्चा करेंगे।

शुरुआती जीवन

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था। मायावती के 6 भाई हैं। उन्होंने कालिंदी कॉलेज, दिल्ली, से कला में स्नातक की उपाधि ली और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी और बी.एड भी किया।

उनके पिता की ख्वाहिश थी कि बिटिया कलेक्टर बने और इसी के चलते मायावती ने अपना बहुत सारा वक़्त भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगा दिया।

मायावती

इसी दौरान उन्होंने शिक्षिका के रूप में भी कार्य करना शुरु किया। तभी काशीराम से मुलाकात हुई। इसी के बाद मायावती बड़े पैमाने पर कांशीराम द्वारा शुरू किये गए कार्यों और परियोजनाओं से जुड़ गयीं।

कहा तो ये भी जाता है कि मायावती के जीवन में कांशीराम के बढ़ते प्रभाव से उनके पिता बिलकुल भी खुश नहीं थे। लेकिन अब इसमें सच और झूठ तलाशने के लिए हमारे पास विकल्प की गुंजाइश कम है।

कांशीराम की ‘माया’ ने बदल दिया चुनावी समीकरण

मायावती एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ हैं और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमन्त्री रह चुकी हैं। वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष हैं। उन्हें भारत की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री के साथ-साथ सबसे पहली दलित मुख्यमंत्री भी होने का श्रेय प्राप्त है।

मायावती चार बार सूबे की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और उन्होंने सत्ता के साथ-साथ आनेवाली कठिनाइओं का डटकर सामना भी किया है।

कांशीराम की विचारधारा और कर्मठता से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। उनका राजनैतिक इतिहास काफी सफल रहा और 2003 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव हारने के बावजूद उन्होने सन 2007 में फिर से सत्ता में वापसी की।

मायावती

अपने समर्थको में ‘बहन जी’ के नाम से मशहूर मायावती 13 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनीं।

मायावती

हालांकि 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में ‘नेता जी’ (मुलायम सिंह यादव) ने ‘बहन जी’ को सियासी पटखनी दे दी।

राजनैतिक जीवन

साल 1984 तक मायावती ने बतौर शिक्षिका काम किया। वे कांशीराम के कार्य और साहस से काफी प्रभावित थी। 1984 में जब कांशीराम ने एक नए राजनैतिक दल ‘बहुजन समाज पार्टी’ का गठन किया, तो मायावती नौकरी छोड़ कर पार्टी की पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता बन गयीं।

उसी साल उन्होंने मुज्ज़फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से अपना पहला चुनाव अभियान आरंभ किया। सन 1985 और 19 87 में भी उन्होंने लोकसभा चुनाव में कड़ी मेहनत की। आख़िरकार सन 1989 में उनके दल ‘बहुजन समाज पार्टी’ ने 13 सीटों पर चुनाव जीता।

मायावती

धीरे-धीरे पार्टी की पैठ दलितों और पिछड़े वर्ग में बढती गयी और सन 1995 में वे उत्तर प्रदेश की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनायी गयीं।

मायावती

सन 2001 में पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने मायावती को दल के अध्यक्ष के रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

भाजपा-बसपा गठबंधन

2002-2003 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार में मायावती फिर से मुख्यमंत्री चुनी गई। इसके बाद बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और मायावती की सरकार गिर गयी। इसके बाद मुलायम सिंह यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।

मायावती

सन 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद मायावती फिर से सत्ता में लौट आई। इस चुनाव में बसपा का नारा था- “चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगा दो हाथी पर”। इन नारों को लेकर वाद-प्रतिवाद भी खूब हुए।

“पत्थर रख लो छाती पर, बटन दबा दो हाथी पर”।

“तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार”।

“हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है”।

“पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा”।

“बनिया माफ, ब्राह्मण हाफ और ठाकुर साफ़”।

ये भी बसपा के चुनावी नारों में शुमार हैं। खास बात यह है कि ये उस समय के चुनावी नारें हैं। जब राज्य की गद्दी पर बैठने के लिए हर तरफ से पुरजोर कोशिशें हो रहीं थी। और इन नारों से राज्य की सियासत में आग में घी डालने का काम किया। यही वजह है कि मायावती आज भी सिर्फ एक समाज विशेष की होकर रह गई हैं।

मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान दलित और बौद्ध धर्म के सम्मान में कई स्मारक स्थापित किये। जो आज भी चर्चा का विषय हैं। खासतौर पर लखनऊ में हाथी वाली मूर्तियाँ।

राजनीति में पहचान

मायावती अपने शासनकाल में कई विवादों और घोटालों के आरोपों में जरूर रही हों पर उनका राजनीतिक अभ्युदय सचमुच अद्भुत रहा है। एक सामान्य परिवार से आई दलित महिला ने ऐसा मक़ाम हासिल किया। जैसा इस देश के इतिहास में कम ही महिलाओं ने किया है।

मायावती

विवादों की परवाह किए बिना, मायावती के समर्थको ने हर बार उनका साथ दिया और अपनी वफादारी साबित की है। मायावती ने दलितों के दिल में अपनी खुद की जगह बनाई है और दलितों में अपने प्रति विश्वास कायम किया है। यही वजह है कि आज भी मायावती का वर्चस्व दलित समाज में कायम है।

सियासी घटनाक्रम

#1995: उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में चुनी गईं।

#1997: दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में चुनी गईं।

#2001: कांशी राम की उत्तराधिकारी घोषित की गईं।

#2002: एक बार फ़िर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।

#2007: चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री नियुक्त हुईं।

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