मीडिया की मनमानी पर भड़के चीफ जस्टिस, कहा- अपनी हदें मत भूलिए

नई दिल्ली: चीफ जस्टिस  दीपक मिश्रा ने मीडिया की मनमानी पर सवाल उठाए हैं. उनके अनुसार पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है जिसको लेकर संविधान में प्रावधान किए गए हैं. किसी भी प्रोफेशन में विचारों में सहमति-असहमति व्यक्त की जा सकती है लेकिन महान्यायवादी द्वारा उठाए गए सवालों से सियासत और पत्रकारिता जगत में सवाल खड़े किए जा सकते हैं.चीफ जस्टिस

पत्रकारिता जगत के लिए ऐसी बातें कोई नई नहीं हैं लेकिन जब बात देश के महनीय व्यक्तियों के द्वारा कही जाती है तो उसका आकलन करना जरूरी है. राजनीतिक परिपाटी पर मीडिया का ऐसे आरोपों से सामना होता रहा है लेकिन सर्वोच्च महान्यायविद की सलाह किसी मुद्दे को जन्म दे सकती है.

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द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस मिश्रा  ने कहा कि वो इस केस पर नहीं बल्कि सामान्य बात कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वायर के संपादकों व पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्रवाई पर रोक लगाई. कोर्ट में 12 अप्रैल को अगली सुनवाई होगी.

गुजरात हाईकोर्ट ने वेब पोर्टल द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने जय शाह द्वारा दाखिल आपराधिक मानहानि केस को रद्द करने की मांग की थी. वेब साइट ने दावा किया था कि एनडीए के सत्ता में आने के एक साल बाद उनकी कंपनी का कारोबार 16,000 गुना बढ़ गया था.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कंपनी ने 2014 में अपने कारोबार में भारी वृद्धि की.  एक साल में इसकी आय 50,000 रुपये से बढ़कर 80 करोड़ रुपये हो गई. जय शाह ने लेख की लेखिका रोहिणी सिंह के खिलाफ एक आपराधिक मानहानि मुकदमा दायर किया है.

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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि हम प्रेस की आजादी का सम्मान करते हैं पर उसे भी जिम्मेदारी से काम करना चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ये नहीं सोच सकता कि वो रातों रात पोप बन सकता है. इलेक्ट्रानिक मीडिया में कई लोग ये सोचते हैं कि वो कुछ भी लिख सकते हैं.

चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या कुछ लोग तख्त पर बैठकर कुछ भी लिख सकते हैं? क्या ये पत्रकारिता है? उन्‍होंने कहा कि हालांकि मैं हमेशा प्रेस की आजादी का पक्षधर हूं लेकिन कैसे कोई किसी के बारे में कुछ भी बोलना शुरू कर देता है. हर चीज की एक कोई सीमा होती है.

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