राज्यसभा में एससी/एसटी अधिनियम बहाल करने के लिए विधेयक पारित

नई दिल्ली। राज्यसभा में गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2018 सर्वसम्मति से पारित हो गया। विधेयक के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश को पलट दिया गया है जिसमें इस अधिनियम के तहत आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया था। लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो गया था, इसलिए राष्ट्रपति की सहमति के बाद यह कानून बन जाएगा।

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विधयेक पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार दलितों और कमजोर तबके के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और जोर देकर कहा कि इस विधेयक को ‘किसी दबाव’ में नहीं लाया गया है।

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इस विधेयक के अंतर्गत जांच अधिकारी को एससी/एसटी अधिनियम के अंतर्गत नामजद आरोपी की गिरफ्तारी के लिए किसी अधिकारी के मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा, एससी/एसटी अधिनियम के अंतर्गत आरोपी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं होगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि इस अधिनियम के अंतर्गत नामजद आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी अनिवार्य होगी। इसके अलावा एक पुलिस उपाधीक्षक यह जानने के लिए प्रांरभिक जांच कर सकता है कि मामला इस अधिनियम के अंतर्गत आता है या नहीं।

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विधेयक में यह प्रावधान दिया गया है कि इस प्रस्तावित अधिनियम के अंतर्गत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। इसमें स्पष्ट किया गया है कि यह प्रावधान किसी भी अदालत के आदेश या निर्देश के बाद भी लागू होगा।

गहलोत ने कहा कि इस विधेयक में विशेष न्यायालयों के प्रावधानों को भी शामिल किया गया है और 14 राज्यों में पहले ही इस उद्देश्य के लिए 195 विशेष अदालतों का निर्माण किया जा चुका है। नए कानून के अंतर्गत, 60 दिनों के अंतर्गत जांच पूरी करने और आरोपपत्र दाखिल करने का प्रावधान है।

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