भाजपा के मिशन 2019 पर गहरी चोट, अभी नहीं संभले तो मोदी खा जाएंगे मात!

नई दिल्ली। साल 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से भाजपा के राजनीतिक करियर में जो उछाल आया इससे पहले कभी नहीं देखा गया। लेकिन इसी कारण पार्टी के सर्वोच्च शिखर पर बैठे नेता इस बात को भूल गए कि सफलता के नए आयामों को रचने में वे एक अहम बात दरकिनार कर चुके हैं।

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मिशन 2019 पर गहरी चोट

बात है एकजुटता की… वक्त के साथ पार्टी नेताओं की सोच और मंतव्यों में बदलाव आया है। साथ ही आपसी मतभेद बढ़े हैं।

विचारों में भेद होना लाजमी है, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मतभेदों की इस खींचातनी में जब आपसी व्यवहार प्रभावित होने लगता है तो इसका सीधा असर पार्टी की इमेज पर पड़ता है। वो भी तब, जब ये मनमुटाव महज पार्टी के भीतर दबी न रहे।

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खबरों के मुताबिक़ केंद्र सरकार के सीनियर मंत्री और एलजेपी नेता रामविलास पासवान ने चार सालों में पहली बार भाजपा के खिलाफ मुंह खोला है। वहीं पासवान का समर्थन करने में जेडीयू के नीतीश कुमार भी पीछे नहीं रहे, जिन्होंने लालू का साथ छोड़कर पिछले साल बिहार का तख्ता पलट किया था।

बता दें पासवान ने मोदी सरकार में रहते हुए बीजेपी पर अप्रत्यक्ष रूप से दलितों और अल्पसंख्यकों के हितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। इसके अगले ही दिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार उनकी बातों के समर्थन में आ गए।

खबरों की माने तो यह महज एक संयोग नहीं था। पासवान और नीतीश की युगलबंदी नये सियासी समीकरण की ओर इशारा कर रही है। जो भविष्य में बीजेपी भारी पड़ने वाली है।

दोनों की चिंता बिहार से लेकर दिल्ली तक न सिर्फ उनकी उपेक्षा को लेकर है बल्कि सहयोगी रहते हुए भी उनके राजनीतिक स्पेस में हस्तक्षेप का मुद्दा भी है।

मालूम हो कि सोमवार को नीतीश कुमार ने पटना में कहा था कि वह किसी भी गठबंधन के साथ रहें, लेकिन उनकी मूल अवधारणा में बदलाव नहीं हुआ है।

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और समाज को तोड़ने व बांटने वाली नीति से समझौता नहीं कर सकते। उन्होंने इशारों में पिछले कुछ दिनों में बिहार से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के भड़काऊ बयानों पर ऐतराज जताया था।

नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान के उस बयान का भी समर्थन किया जिसमें उन्होंने बीजेपी से दलित, अल्पसंख्यक के हित के लिए और गंभीरता से सोचने को कहा।

वहीं खबर यह भी है कि दोनों ही दलों के नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी है कि भाजपा ने उन्हें सहयोगी होने का उचित स्थान नहीं दिया।

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दलित नेता के रूप में स्थापित रामविलास पासवान को बीते 4 सालों में राजनीतिक रूप से कोई मंच नहीं दिया गया। बल्कि उनको दरकिनार कर भाजपा दूसरे दलित नेताओं को सामने लाई।

दूसरी तरफ जिस उत्साह से नीतीश कुमार को आरजेडी से गठबंधन तोड़कर एनडीए में शामिल किया गया, बाद में यहां भी इन्हें हाशिए पर रखने की कोशिश की गई। यही बात रामविलास और नीतीश दोनों को करीब लाने वाला कॉमन फैक्टर बना।

खबरों की माने तो पिछले कुछ दिनों से दोनों लगातार संपर्क में हैं और सियासी घटनाक्रम को लेकर एक साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं।

कुल मिलाकर दोनों का एक मात्र लक्ष्य साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में अपनी-अपनी कब्जेदारी बनाए रखने का है।

इस बारे में नीतीश ने भाजपा से अपना मंतव्य साफ़ करने की कई बार गुजारिश की, लेकिन उनकी इस बात को दरकिनार कर दिया गया।

ठीक यही स्थिति रामविलास की भी है। जेडीयू के एक नेता ने बताया कि अगर नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की ताकत को एक साथ जोड़ ले तो वे बिहार में अब भी सियासी समीकरण में सब पर भारी पड़ेंगे।

वहीं ताजा मामले को देखते हुए नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान के साथ नजदीकी कर यह भी संदेश दे दिया है।

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