भगत सिंह को इंसाफ दिलाने के लिए पाकिस्तान ने किया वो काम जो न कर पाया भारत न मोदी

भगत सिंहनई दिल्ली: भारत के बड़े क्रांतिकारियों में शामिल और अकेले ही अंग्रेजों की नाक में दम करने का माद्दा रखने वाले स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को अपने देश में शहीद का दर्जा नहीं मिला है, जबकि भारत आजादी के 70 साल पूरे कर चुका है। लेकिन आज तक उन क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा नहीं मिल पाया, जिन्‍होंने आजादी के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। लेकिन पाकिस्तान में उन्हें लेकर अच्छी पहल की है। यहां एक बार फिर से उन्हें बेगुनाह साबित करने के लिए लाहौर हाई कोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई है।

महान क्रांतिकारी भगत सिंह को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दे दी थी। उनके साथ ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भी मौत की सजा दी गई थी। ये तीनों ही आज भी क्रांतिकारी ही कहलाते हैं। हम इन्हें शहीद-ए-आजम मानते हैं। हैरानी की बात ये है कि राज्‍यसभा में इन क्रांतिकारियों को शहीद मानने के बाद भी उसे अभी तक अमल में नहीं लाया गया है। जबकि इस बात को चार साल बीत चुके हैं।

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वहीं दूसरी तरफ हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह को ब्रिटेन के एक पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में निर्दोष साबित करने के लिए लाहौर उच्च न्यायालय में फिर से याचिका दायर की गई है। सात महीने पहले कोर्ट ने कहा था कि याचिका पर सुनवाई बड़े पीठ में हो। अदालत ने अभी तक बड़ी पीठ का गठन नहीं किया है।

भगत सिंह स्मारक फाउंडेशन के वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने सोमवार को आवेदन देकर याचिका पर जल्द सुनवाई का आग्रह किया। कुरैशी ने कहा, “लाहौर उच्च न्यायालय में भगत सिंह मामले पर जल्द सुनवाई के लिए मैंने याचिका दायर की है। आज मैंने रजिस्ट्रार से आग्रह किया कि मामले की सुनवाई की तारीख तय करें और उम्मीद है कि इस महीने मामले पर सुनवाई होगी”।

उन्होंने कहा कि “संघीय सरकार को पत्र लिखकर शादमन चौक (लाहौर के मुख्य हिस्से) पर भगत सिंह की प्रतिमा लगाने की मांग की गई है जहां उन्हें उनके दो साथियों के साथ फांसी पर लटकाया गया था”।

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लाहौर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने फरवरी में मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया था सिंह के मामले पर सुनवाई के लिए बड़ी पीठ का गठन किया जाए।

याचिका में कुरैशी ने कहा था कि भगत सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अविभाजित हिंदुस्तान की आजादी के लिए संघर्ष किया था।

कुरैशी ने इसके साथ ही कहा है कि भगत सिंह का न केवल सिखों बल्कि मुसलमानों द्वारा भी सम्मान किया जाता है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने दो बार भगत सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित कर चुके हैं।

भगत सिंह को 23 साल की उम्र में ब्रिटिश शासकों ने 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ा दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने ब्रिटेन की औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ साजिश रची थी। इस सिलसिले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स की कथित तौर पर हत्या करने के लिए यह मामला दर्ज किया गया था।

 

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