महाशिवरात्रि के ही दिन इस स्थान पर रावण ने दी थी अपने नौ सिरों की आहुति

देवभूमि के इस मंदिर में आज भी रावण से जुड़ी ये निशानी आज भी मौजूद है। उत्तराखंड के गोपेश्वर में दशोली गढ़ के वैरासकुंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने तप कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।

शिव

स्कंद पुराण के केदार खंड में दसमोलेश्वर के नाम से वैरासकुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है। वैरासकुंड में जिस स्थान पर रावण ने शिव की तपस्या की वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां विद्यमान है।

वैरासकुंड के बारे में मान्यता है कि त्रेता युग में इसी स्थान पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न कर सिद्धी प्राप्ति के लिए अपने नौ सिरों की आहुति दी थी। रावण जैसे ही यज्ञकुंड में अपने दसवें सिर की आहुति देने लगा, तभी भगवान शिव प्रकट हो गए और रावण को सिर की आहुति देने से रोक लिया।

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इसी स्थान पर भोलेनाथ ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे बलशाली होने का वरदान दिया था। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार इस स्थान पर पौराणिक और पुरातत्व महत्व की अनेक चीजें आज भी विद्यमान हैं। कुछ समय पहले यहां खेत में खुदाई के दौरान एक अन्य कुंड मिला है, जबकि आस-पास खुदाई करने पर प्राचीन पत्थर निकलते हैं।

60 वर्षीय त्रिलोचन प्रसाद और मदन का कहना है कि वैरासकुंड रावण की तपस्थली है। बदरीनाथ के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि मान्यता है कि रावण ने चमोली जिले के वैरासकुंड में तप कर अपने नौ सिरों की यज्ञाहुति दी थी। पुराणों में भी रावण द्वारा हिमालय क्षेत्र में तप किए जाने का उल्लेख है।

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