प्रेरक-प्रसंग: समय पाबन्दी का महत्त्व…
बात उस समय की है जब मोहनदास करमचंद गाँधी सातवीं कक्षा में पढ़ते थे | स्कूल के प्रधान अध्यापक दोरबजी एदुलजी गिमी थे | वह बहुत अनुशासन प्रिय थे और उन्होंने ऊँची के विधार्थियों के लिए व्यायाम, खेल – कूद और क्रिकेट अनिवार्य कर रखा था | मोहनदास को व्यायाम और खेल –कूद में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं थी और वे किसी में भाग नहीं लेते थे |
मोहनदास स्कूल से सीधे घर भागते थे क्योंकि उन्हें अपने पिता की सेवा-सुशुश्रा करनी होती थी | अगर वे स्कूल में पढाई के बाद खेल – कूद के लिए रुकते तो समय से अपने पिता की सेवा-सुशुश्रा के लिए घर नहीं पहुँच पाते | मोहनदास ने प्रधान अध्यापक से इस कारण खेल – कूद में भाग लेने से छूट मांगी |
उनकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की गयी | एक शनिवार को जब स्कूल प्रात: लगा, खेल – कूद के लिए मोहनदास को दुबारा 4 बजे सायंकाल स्कूल जाना था | मोहनदास के पास घड़ी नहीं थी, आसमान में बादल छाए हुए थे | ठीक समय का उन्हें पता नहीं चला | जब बालक स्कूल पहुंचा, सभी लड़के वापस जा चुके थे |
दूसरे दिन प्रधान अध्यापक ने मोहनदास से खेल – कूद में गैर – हाजिर होने का कारण पूछा | यद्यपि मोहनदास ने सही सही कारण बता दिया तो भी प्रधान अध्यापक ने विश्वास नहीं किया और झूठ बोलने के लिए उन पर एक – दो आने का जुर्माना कर दिया |
बालक को बड़ी मार्मिक पीड़ा पहुंची कि उनके प्रधान अध्यापक ने उन्हें झूठा समझा | बाद में मोहनदास के पिता द्वारा पत्र लिखे जाने पर कि मोहनदास स्कूल शाम को गया था और घड़ी न होने की वजह से ठीक समय का पता नहीं चल पाया था, जुर्माना माफ़ कर दिया गया | बालक ने तब समझा कि सच बोलने के साथ साथ समय – पाबन्दी भी आवश्यक है | और तब से उस बालक ने समय की पाबन्दी के मामले में कभी चूक नहीं की |
कहानी से शिक्षा – समय की पाबन्दी उतनी ही आवश्यक है जितना कि सत्य – मापण | बच्चों , यदि तुम समय पाबन्दी के महत्त्व को समझोगे तो कभी भी किसी गलत – फहमी का शिकार न होगे |