
मालदीव और श्रीलंका का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आंध्र प्रदेश पहुंच गए हैं. पीएम मोदी यहां अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बाद तिरुमला में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए रवाना होंगे.
आइए इसी कड़ी में आपको इस मंदिर के इतिहास और विशेषताओं के बारे में बताते हैं.
आंध्र प्रदेश में मौजूद इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की पूजा होती है. इन्हें श्रीनिवास, बालाजी आदि नामों से भी जाना जाता है. इस मंदिर के दरवाजे के ठीक दाईं ओर एक छड़ी रखी रहती है.
ऐसी मान्यता है कि इस छड़ी का उपयोग भगवान के बाल रूप को मारने के लिए किया गया था. तब उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी. इसी वजह से बालाजी को चंदन का लेप ठोड़ी पर लगाए जाने की शुरुआत की गई.
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इस मंदिर के द्वार पर 18वीं शताब्दी में 12 वर्षों के लिए ताला जड़ दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि एक राजा ने 12 लोगों की मारकर उन्हें मंदिर की दीवार पर लटका दिया था. उस समय वेंकटेश्वर स्वामी प्रकट हुए थे.
गुरूवार के दिन स्वामी की मूर्ति को सफेद चंदन से रंग दिया जाता है. जब इस लेप को हटाया जाता है तो मूर्ति पर माता लक्ष्मी के चिह्न बने रह जाते हैं.
मंदिर के पुजारी पूरे दिन मूर्ति के पुष्पों को पीछे फेंकते रहते हैं और उन्हें नहीं देखते हैं, दरअसल इन फूलों को देखना अच्छा नहीं माना जाता है.
सामान्य तौर पर देखने में लगता है कि भगवान की मूर्ति गर्भ गृह के बीच में है, लेकिन वास्तव में जब आप इसे बाहर से खड़े होकर देखेंगे तो यह मंदिर के दाईं ओर स्थित है.
मूर्ति पर चढ़ाए जाने वाले सभी फूलों और तुलसी के पत्तों को भक्तों में न बांटकर, परिसर के पीछे बने पुराने कुएं में फेंक दिया जाता है. बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुएं तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं.
इस मंदिर के गर्भगृह मे जलने वाले दियों को कभी नहीं बुझने दिया जाता. ये दीप सालों से भगवान बालाजी के मंदिर को उज्जवल कर रहे हैं.
भगवान बालाजी की मूर्ति पर रेशमी बाल हैं. लंबा समय गुजरने के बाद भी आज तक उनकी लटें नहीं उलझी हैं. बालाजी की इसी मूर्ति को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है.