रिपोर्ट- अनुराग पाल ।
स्थान- ऊधम सिंह नगर ।
इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने कैंसर के उपचार एवं न्यूरोलोजी में हुए आधुनिक विकास कार्यों पर रोशनी डाली।
काशीपुर में आज इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के वरिष्ठ डॉक्टरों ने कैंसर के इलाज और न्यूरोलोजी के क्षेत्र में हाल ही में हुए विकास कार्यों पर एक सत्र का आयोजन किया, जो अब इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के मरीज़ों के लिए उपलब्ध हैं।
डॉ प्रवीण गर्ग, सर्जिकल ओंकोलोजिस्ट एवं डॉ रोबिन खोसला, रेडिएशन ओंकोलोेजिस्ट ने आंोकेलोजी के क्षेत्र में हाल ही में हुए विकास कार्यों पर चर्चा की, वहीं डॉ पी.एन. रंजन, न्यूरोलोजिस्ट एवं स्ट्रोक स्पेशलिस्ट ने स्ट्रोक के इलाज में हुए नए विकास कार्यों पर रोशनी डाली तथा गोल्डन आवर के अंदर इलाज के महत्व पर ज़ोर दिया। जहां सत्र के दौरान डाक्टरों ने विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज एवं न्यूरोलोजिकल उपचार के विभिन्न विकल्पों पर जानकारी दी।
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डॉ रंजन ने कहा हैं की स्ट्रोक के लक्षण पहचानने के बाद समय पर कार्रवाई करना बहुत ज़रूरी होता है। स्ट्रोक के लक्षणों में शामिल हैं- चेहरे और बाजु में कमज़ोरी, बोलने में परेशानी, ठीक से देखने में परेशानी। अगर आप इसका समय पर इलाज न किया जाए तो कई मामलों में यह अपंगता का कारण बन सकता है। स्ट्रोक के बाद हर मिनट कीमती होता है और चार घण्टे के अंदर इलाज कर अपंगता की संभावना को कम किया जा सकता है।
वहीं इमेजिंग के आधुनिक उपकरणों जैसे मल्टी-मॉडल एमआरई और सीटी ब्रेन और परफ्यूज़न इमेजिंग के द्वारा तय किया जा सकता है कि मरीज़ को अडवान्स्ड क्लॉट बस्टिंग या हाइपर-एक्यूट स्ट्रोक पाथवे के द्वारा क्लॉट रीट्रिवल प्रक्रिया से फायदा होगा। क्लॉट को घोलने वाली दवाएं क्लॉट को घोल कर खून के प्रवाह को फिर से सामान्य कर देती हैं।’’
डॉ रंजन ने स्ट्रोक के इलाज के आधुनिक तरीकों पर बात करते हुए कहा, ‘‘अगर क्लॉट इतना बड़ा हो कि इंटरावेनस थ्रोम्बोलाइटिक द्वारा इसका इलाज न किया जा सके तो इसके लिए नए तरीके जैसे क्लॉट रीट्रिवल प्रक्रिया को अपनाया जाता है। किसी विशेष बड़ी वाहिका में मौजूद क्लॉट के इलाज के लिए भी इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी के द्वारा डॉक्टर ग्रोइन क्षेत्र से एक कैथेटर को दिमाग की आर्टरी तक भेजता है, जहां स्टेंट खुल जाता है और क्लॉट घुल जाता है, इसके बाद डॉक्टर क्लॉट को स्टेंट की मदद से निकाल देते हैं।
लक्षण शुरू होने के 12 घण्टे के अंदर यह प्रक्रिया की जाती है, हालांकि स्ट्रोक शुरू होने के बाद जितना जल्द से जल्द प्रक्रिया की जाए, उतना ही अधिक फायदा होता है, इसलिए ऐसे मामलों में मरीज़ को जल्द से जल्द हाइपर-एक्यूट स्ट्रोक सेंटर लेकर जाना चाहिए। मैकेनिकल क्लॉट रीट्रिवल प्रक्रिया भी इसमें कारगर होती है जहां क्लॉट बस्टर की मदद से क्लॉट को घोल दिया जाता है। मरीज़ के ठीक होने में विशेष स्ट्रोक आईसीयू की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यहां चौबीसों घण्टे मरीज़ पर निगरानी रखी जाती है और संक्रमण को नियन्त्रित रखने के लिए सख्त प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है। आज रीहेबिलिटेशन प्रक्रिया में आधुनिक उपकरणों जैसे रोबोटिक रीहेबिलिटेशन का इस्तेमाल भी किया जाता है ताकि मरीज़ के हाथ पैर अपने काम ठीक से करने लगें।’’
अपोलो हॉस्पिटल्स ने अपने अनुभवी डॉक्टरों, अत्याधुनिक सुविधाओं एवं आधुनिक चिकित्सा तकनीकों के साथ भारत में किफ़ायती दरों पर विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ बनने में नए बेंचमार्क स्थापित किए हैं। स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं में निरंतर अपग्रेडेशन के साथ मरीज़ों को इलाज के सर्वश्रेष्ठ विकल्प उपलब्ध कराए हैं, जिसके परिणाम विश्वस्तरीय सेवाओं के समकक्ष हैं।
डॉ प्रवीण गर्ग ने कहा, ‘‘उत्तराखण्ड में 2014 से 2016 के बीच कैंसर के मामलों की संख्या 10.15 फीसदी बढ़ी है, यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत 9.2 फीसदी से अधिक है। तंबाकू और शराब के बढ़ते सेवन के कारण पहाड़ों पर मुख और फेफड़ों के कैंसर के मामले अधिक पाए जाते हैं। 2016 के आईसीएमआर आंकड़े दर्शाते हैं कि उत्तराखण्ड में कैंसर के हर चार मामलों में से एक का कारण तंबाकू है। रोग की रोकथाम केे लिए जल्द निदान सबसे अच्छा समाधान है, जिसके लिए नियमित रूप से जांच कराना महतवपूर्ण है, समय पर निदान के द्वारा इलाज जल्दी शुरू होता है और मरीज़ के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। आज बायोप्सी एवं रेडियोग्राफी के अलावा निदान के कई आधुनिक तरीके भी उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा कैंसर की स्टेज और मरीज़ के जीवित रहने की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है।
डॉ गर्ग और डॉ खोसा ने कैंसर के बढ़ते मामलों के खतरे को देखते हुए हाल ही में चिकित्सा जगत की आधुनिक तकनीकों पर जानकारी दी, गौरतलब है कैंसर आज सबसे आज गैर-संचारी रोगों की सूची में सबसे आम बीमारी है और भारत में मृत्यु एवं रूग्ण्ता का मुख्य करण बन चुका है। डॉ खोसा ने बताया कि कैसे रेडिएशन टेक्नोलॉजी मुश्किल ट्यूमर तक पहुंचने में भी मददगार साबित हो सकती है।
दरअसल डॉ रोबिन खोसा ने कैंसर के इलाज में हुए आधुनिक विकास कार्यों जैसे इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में टोमोथेरेपी तथा अपोलो प्रोटोन कैंसर सेंटर में प्रोटोन बीन थेरेपी के बारे में जानकारी दी, जिसने आधुनिक पेंसिल बीम स्कैनिंग तकनीक के साथ कैंसर की देखभाल की देखभाल के क्षेत्र में नए मार्ग प्रशस्त किए हैं, और इलाज में उच्चतम सटीकता को सुनिश्चित किया है। उन्होंने पारम्परिक रेडिएशन थेरेपी की तुलना में प्रोटोन थेरेपी के फायदों पर जानकारी दी, जिसके द्वारा दुनिया भर में 200,000 से अधिक मरीज़ों का इलाज सफलतापूर्वक किया जा चुका है।
वहीं प्रोटोन बीम थेरेपी अपनी बेहतर डोज़ डिलीवरी और बेहतर सटीकता के साथ कैंसर से जंग को आसान बनाती है, क्योंकि इसमें स्वस्थ उतकों को नुकसान पहुंचने की संभावना कम हो जाती है, इलाज की सफलता की संभावना अधिक होती है और मरीज़ के जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। कुल मिलाकर यह कम अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रभावों (कम साईड इफेक्ट्स) के साथ बेहतर परिणाम देती है।