एक हजार साल पुराने इस दरगाह में मुंशी प्रेमचंद भी चढ़ाते थे चादर

गोरखपुर शहर में स्थित किसी दरगाह का नाम लोगों के जहन में सबसे पहले आता है तो वह दरगाह मुबारक खां शहीद है। बेतियाहाता में स्थित इस दरगाह का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। इस दरगाह में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोगों की आस्था है। दरगाह से जुड़े लोग बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद में इस दरगाह को लेकर गहरी आस्था थी वह यहां चादर भी चढ़ाया करते थे। उन्होंने इसी दरगाह से प्रेरित होकर ईदगाह पुस्तक लिखी।

कौन थे हजरत मुबारक खां
हजरत मुबारक खां हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां के खलीफा व मुरीदीन में से थे। गाजी मियां ने बुराईयों को खत्म करने के लिए आपको गारेखपुर भेजा। हक और बातिल की जंग में आपने बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते करीब 29 साल की उम्र में शहादत का जाम पिया। यहां जुमेरात व नौचंदी जुमेरात को काफी भीड़ होती है।

आपके साथ आपके भाइयों ने भी शहादत पाई। जिसमें एक भाई की मजार प्रेमचंद पार्क रोड बेतियाहाता स्थित दरगाह हजरत बाबा तबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां के नाम से मशहूर है। जहां दो दिन उर्स-ए-पाक मनाया जाता है।

अहमदनगर चक्शा हुसैन गोरखनाथ में हजरत बाबा जलालुद्दीन शाह का उर्स ग्यारहवीं शरीफ के दिन व हजरत बाबा मेराज शाह का उर्स ग्यारहवीं शरीफ के दो दिन पहले मनाया जाता है। यह दोनों बुजुर्ग हजरत मुबारक खां शहीद के साथी थे।
 

उर्स पर लगता है मेला
ईद के चांद यानी शव्वाल माह की 26, 27, 28 को उर्स-ए-पाक मनाया जाता है। मेला लगता है। जिसमें हर मजहब के मानने वालों की शिरकत होती है। हजरत मुबारक खां शहीद पूर्वांचल के बड़ें औलिया-ए-किराम में शुमार होते है। आज भी इस दरगाह को आला मकाम हासिल है। दरगाह से सटे एक मस्जिद, ईदगाह, मदरसा व कई वलियों की मजारें हैं।

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