आज के दिन राजा ने किया था 100 साल पहले 650 जवानों की सेना का निर्माण…

राजस्थान के धौलपुर जिले की सीमाएं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से लगी होने के कारण कानून व्यवस्था और शांति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती रहती है. चंबल के बीहड़ शुरू से ही डकैतों और बदमाशों के लिए शरण स्थली रहे हैं. आजादी से पूर्व शुरू हुई कहानी में जिले का इतिहास शुरू से ही बंदूक, बागी, बदमाश के नाम से विख्यात रहा है. लेकिन जिले की आरएसी की छठी बटालियन ने शूर वीरता का परिचय देते हुए खूंखार डकैतों और बदमाशों से लोहा लिया है.

आरएसी छठी बटालियन का 100 वर्ष का इतिहास पूर्ण हो गया है. जिला पुलिस अधीक्षक एवं आरएसी कमाडेंट मृदुल कच्छावा ने यूट्यूब पर टीजर लॉन्च किया है. इस डॉक्युमेंट्री में आरएसी छठी बटालियन के शौर्य वीरता के कौशल का प्रदर्शन किया गया है. जिले की आरएसी छठी बटालियन अपने अदम्य साहस, शौर्य और अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जानी जाती है. इस बटालियन  के अनगिनत योद्धा आंतरिक सुरक्षा से लेकर सीमा सुरक्षा तक और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर चौकसी से लेकर चंबल के बीहड़ों में दस्यु उन्मूलन के लिए प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटे हैं.

क्या है छठी बटालियन का इतिहास

छठी बटालियन के जांबाज सिपाहियों ने समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए अभय व निडर होकर सामाजिक शांति बनाए रखने में अहम भूमिका अदा की है. आज से करीब 100 वर्ष पहले अगस्त 1918 में तत्कालीन धौलपुर रियासत के महाराज राणा उदयभान सिंह ने अपने इष्ट देव नरसिंह भगवान के नाम पर ब्रिटिश कमांडिंग ऑफिसर जेम्स पैटर्स के नेतृत्व में इंपीरियल सर्विस ट्रूप्स के रूप में 143 वीं नरसिंह इन्फेंट्री 650 जवानों के साथ खड़ी की थी.

इतिहासकार डॉ.परमेश चंद्र पाठक का कहना है कि प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद सन 1919 में 143 वीं नर्सिंग इन्फेंट्री को इंडियन स्टेट फोर्स (आईएसएफ) के रूप में नई पहचान दी गई. 1935 में वर्तमान की क्वॉटर गार्ड बिल्डिंग का निर्माण हुआ. आजादी के बाद सन 1947 से 1952 तक 143 वीं नरसिंह इन्फेंट्री के जवानों ने प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) के रूप में सेवाएं दीं. इन जवानों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के साथ पाकिस्तान से सटी 1040 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की ऊंट पर बैठकर निगरानी करने का जिम्मा संभाला. साथ ही इन जवानों ने इस अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर घुसपैठ, लूट, चोरी, डकैती जैसी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया था.

1952 में राजस्थान सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि एक स्पेशल फोर्स का गठन किया जाए जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ डकैती जैसी गंभीर समस्या से लोहा ले सके और कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा भी सिविल पुलिस के साथ उठा सके.  इस उद्देश्य के साथ साल 1952 में राजस्थान सरकार ने राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी (RAC) का गठन किया. आरएसी के जवानों के सम्मान में सरकार द्वारा अपने राजकीय पशु ऊंट को आरएसी के पहचान के रूप में मान्यता दे दी गई जिसको हर जवान अपनी वर्दी पर बड़े गर्व के साथ धारण करता है.

बीहड़ में डाकुओं के खौफ को किया खत्म

50 के दशक में चंबल के बीहड़ में डाकुओं का खौफ अपने चरम पर था इसलिए प्रथम बटालियन आरएसी को वर्तमान छठी बटालियन आरएसी परिसर में तैनात किया गया था. सन 1982 में धौलपुर को भरतपुर से अलग करते हुए राजस्थान सरकार ने स्वतंत्र जिले के रूप में घोषित कर दिया. कानून व्यवस्था के मद्देनजर अतिरिक्त पुलिस बल की मांग भी शासन के सामने आने लगी. तब 1984 में धौलपुर आरएसी के जवानों को अपनी स्वतंत्र छठी बटालियन आरएसी के रूप में नई पहचान मिली.

यही नहीं, मौजूदा वक्त में भी आरएसी की छठी बटालियन का कारवां तत्कालीन रियासत की इमारत में संचालित किया जा रहा है. आरएसी के जवानों ने दस्यु उन्मूलन से हटकर अन्य क्षेत्रों में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जवानों ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए जूडो-कराटे, बॉक्सिंग, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, हॉकी, कुश्ती आदि खेलों में भी स्वर्ण पदक हासिल किए हैं.

ऐसे में आरएसी का सौ वर्ष का गौरवमयी इतिहास पूर्ण होने पर पुलिस अधीक्षक मृदुल कच्छावा ने डॉक्युमेंट्री बनाने की सोची, जिसके इतिहास के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. आरएसी की छठी बटालियन का 100 वर्ष का गरिमामयी  इतिहास पूर्ण होने पर एक डॉक्युमेंट्री को लॉन्च किया है. लॉन्च की गई डॉक्युमेंट्री के अंतर्गत आरएसी छठी बटालियन के संपूर्ण कामों का निष्पादन किया गया है. इसके माध्यम से आरएसी छठी बटालियन के गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित किया गया है.

डॉक्युमेंट्री फिल्म में पिछले 100 वर्ष के इतिहास में धौलपुर की आरएसी छठी बटालियन में डकैती ऑपरेशन के क्षेत्र के अलावा चुनाव को शांतिमय तरीके से संपन्न कराने और बटालियन शूर वीरता का बखान किया गया है. जिला पुलिस अधीक्षक एवं आरएसी कमाडेंट मृदुल कच्छावा ने आरएसी के जवानों के गौरवशाली इतिहास का टीजर लॉन्च किया है.

मृदुल कच्छावा का कहना है कि  छठी बटालियन आरएसी जिसका मुख्यालय धौलपुर में है, उसके इतिहास के 100 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं. सन 1918 में नरसिंह रेजिमेंट के तौर पर इस बटालियन की स्थापना हुई थी. सन 1942 में इंडियन स्टेट फ़ोर्स के रूप में नामांतरण किया था और इसके उपरान्त फर्स्ट बटालियन आरएसी यहां तैनात रही. आज हमने आरएसी को देखा है, जिसकी स्थापना धौलपुर में हुई. इसके गौरवशाली इतिहास को सभी जवानों तक, जन साधारण तक पहुंचाने के लिए हमने एक छोटा प्रयास किया है.

आगे उन्होंने बताया कि एक डॉक्युमेंट्री के तौर पर आरएसी क्या क्रिया कलाप करती है. क्या-क्या काम करती है. डॉक्युमेंट्री की थीम शांति के योद्धा रखी गई है. जैसे भारतीय सेना सहित अन्य फ़ोर्स भारत की सीमा पर तैनात हैं और पुलिस और आरएसी देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए तैनात हैं. वैसे ही हम शांति स्थापित करने के लिए हमेशा कटिबद्ध रहते हैं. आरएसी में आठ कंपनी हैं और इसमें करीब हजार जवान हैं. आरएसी के 14 जवानों ने दस्यु मुक्त बीहड़ और दस्यु मुक्त डांग अभियान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

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