पौराणिक धरोहरों को संजोए रखने के सरकार के सभी दावे फेल! ऐसे कई हैं मठ-मंदिर जिनका नहीं कोई नामों –निशान

रिपोर्ट – कुलदीप राणा आजाद

रूद्रप्रयाग  – उत्तराखण्ड की केदारघाटी में ऐसे कईं ऐतिहासिक मठ-मंदिर हैं, जिनका रहस्य जगजाहिर नहीं है। कारण, इनकी ओर सरकार और प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। इन मठ-मंदिरों के संरक्षण को लेकर भी कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं।

पौराणिक धरोहरों

प्रदेश सरकार पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ाने के लाख दावे तो कर रही है, लेकिन पौराणिक धरोहरों को संजोये रखने के कोई प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। ऐसे में ये धार्मिक चीजें अपनी महता को खोते जा रहे हैं, जो भविष्य के लिए सुखद नहीं है।
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से चालीस किमी दूर बसुकेदार नामक स्थान पर मौजूद भगवान बसुकेदार का मंदिर का निर्माण सोलह सौ वर्ष पूर्व शंकराचार्य ने किया था। इस मंदिर का महत्व केदारखण्ड में भी बताया गया है। वर्णन है कि गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव स्वर्गारोहिणी जा रहे थे तो उस समय पांडवों ने भगवान की तपस्या की, लेकिन भगवान भोले पाण्डवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे ।

यहीं से होकर भगवान शिव केदारनाथ गये थे। भगवान शंकर ने एक रात्रि इस स्थान पर विश्राम किया, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया। प्राचीनकाल में चारधाम यात्रा सड़क मार्ग से नहीं की जाती थी। श्रद्धालु बद्रीनाथ-केदारनाथ एवं गंगोत्री-यमुनोत्री के दर्शनों के लिए पैदल ही यात्रा करते थे। श्रद्धालु गंगोत्री से होकर जखोली-पंवालीकाठा होते हुए बसुकेदार में दर्शन करने के बाद यहीं से आगे केदारनाथ को जाते थे।

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भगवान शिव का केदारनाथ धाम मोक्ष का धाम है। अपनी उम्र की आखिरी सीमा पर रहते हुए श्रद्धालु चारधामों की दर्शन किया करते करते थे, लेकिन समय के साथ ही आज सबकुछ बदल गया है। संसाधन इतने हो गये हैं कि चंद मिनटों में ही भगवान केदारनाथ के दर्शन हो जाते हैं, लेकिन देश-विदेशों से आने वाले श्रद्धालु आज भी पूरी निष्ठा के साथ भगवान केदार के दर्शन को आते हैं। सावन के माह में कांवड़ियें पैलद ही भगवान केदार के धाम पहुंचते हैं।
बसुकेदार में भगवान शिव की महिमा का विशेष महत्व है। शंकराचार्य ने इस स्थान पर केदार की आकृति का मंदिर निर्माण किया है। केदारघाटी में भगवान शंकर के ज्यादातर मंदिर केदारनाथ की आकृति के बने हैं। चाहे वह गुप्तकाशी का मंदिर हो या फिर त्रियुगीनारायण।

मंदिर में वर्षों से रह रहे बाबा चन्द्रा एवं महाराज अरचनी ने बताया कि बसुकेदार मंदि चालीस ग्राम सभाओं के आस्था का केन्द्र है और सालभर श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा रहता है। उनकी माने तो मंदिर के नीचे पानी है और लिंग के स्पर्श से महसूस हो जाता है कि यह पानी के ऊपर है। इसके अलावा गुप्त लिंग है, जो पानी के नीचे है और भगवान भोले को जल चढ़ाने के बाद नीचे लिंग में जाता है। भीष्म पितामाह ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी।

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देवभूमि के नाम से उत्तराखण्ड की पहचान है। केदारखण्ड में भी भगवान बसुकेदार का वर्णन है और यहां पर मंदिर समूह भी है। यहां पर भूमिगत शिवलिंग है और इस पौराणिक मंदिर की दिव्यवा अपने आप में अद्भुत है। इनका संरक्षण किया जाना चाहिए। बसुकेदार केदारघाटी का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन प्रशासन और सरकार का मंदिर की ओर कोई ध्यान नहीं है। मंदिर का रख-रखाव नहीं किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग को ऐसे मंदिरों के संरक्षण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। मंदिर में व्यवस्थाएं न होने से श्रद्धालुओं को भारी दिक्कतों से जूझना पड़ता है।

 

 

 

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