पढ़िए… युद्ध और येरूशलम का दिलचस्प नाता, धर्म के नाम पर ‘लाल’ रहा है इतिहास
नई दिल्ली| येरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के बाद अमेरिका घिर गया है. गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के पास हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं जिसमें अब तक दर्जन भर से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. फिलिस्तीनी लोग इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं. एक तरफ फिलिस्तीन है जो येरूशलम को अपनी राजधानी मानता है वहीं दूसरी ओर इजराइल है जो इसे अपना हिस्सा बताता है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर असलियत क्या है? येरुशलम आखिर किस देश का हिस्सा है. इसे समझने के लिए आपको पूरा माजरा समझना होगा क्योंकि ये कहानी बड़ी ही दिलचस्प है.
ये है माजरा
जमीन के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं को लेकर येरूशलम हमेशा से ही विवादों का केंद्र रहा है. इस शहर को तीन धर्म (ईसाई, मुस्लिम और यहूदी) अपनी पवित्र नगरी मानते हैं. इस वजह से ये विवाद और भी पेचीदा हो जाता है. इस शहर पर अपना अधिपत्य जमाने के लिए इन तीनों धर्मों में समय समय पर भयंकर लड़ाइयां होती रही हैं.
लकिन वर्तमान में हो रहे झगड़े की शुरुआत साल 1948 में हुई जब इजरायल की स्थापना हुई. उस वक्त येरूशलम का पश्चिमी हिस्सा इजरायल के हिस्से में आया और पूर्वी हिस्सा फिलीस्तीन के पास चला गया.
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यहां तक तो ठीक था लेकिन साल 1967 में इन दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया. इस लड़ाई में इजरायल भारी पड़ा और येरूशलम के पूर्वी हिस्से पर कब्जा कर लिया. पूरे येरुशलम पर इजरायल के कब्जे के बाद भी इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिल पाई.
1980 में जब इजरायल ने येरूशलम को राजधानी बनाने का ऐलान तो बखेड़ा खड़ा हो गया. हर तरफ इस फैसले की आलोचना हुई. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी इसकी घोर निंदा की गई. इस कारण ये मामला अधर में लटक गया.
जब साल 1995 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की सरकार ने दूतावास को येरूशलम शिफ्ट करने के लिए एंबेसी एक्ट पास किया तो फिर एक बार बवाल मच गया. बाद में इस कानून को वापस ले लिया गया. यहां गौर करने वाली बात ये है कि अब तक 86 देशों ने इजरायल में अपने दूतावास बनाए हैं लेकिन इस पचड़े से दूर रहने के कारण इन सभी ने इन्हें तेल अवीव में बनाया है.
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जब 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव लड़ा तो इस इस एक्ट को पास करने का वादा किया था. आखिरकार दिसंबर 2017 में भारी विरोध के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे मान्यता दे दी.
धर्मों के बीच टकराव क्यों?
तीन धर्मों की आस्था का केंद्र इस नगरी में 158 चर्च और 73 मस्जिदें हैं. यहां रहने वाले 10 लाख लोगों में 75 प्रतिशत आबादी यहूदियों की है.
तीन हिस्सों में बंटे इस शहर में सबसे बड़ा हिस्सा मुस्लिमों के पास है. यहां के मुस्लिम इसे बेहद ख़ास मानते हैं. यहां पवित्र गुंबदाकार ‘डोम ऑफ रॉक’ यानी कुब्बतुल सखरह और अल-अक्सा मस्जिद है. इस्लाम के लिहाज से यह मस्जिद दुनिया की तीसरी सबसे पवित्र जगह है. मुस्लिमों का मानना है कि जब उनके पैगम्बर ने मक्का से अपने रात की यात्रा की थी तो वो यहीं आए थे और दुआ की थी.
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दूसरी ओर यहूदी लोग यहां अपना पवित्र मंदिर होने का दावा करते हैं. वो दावा करते है यहूदियों की सबसे पवित्रतम जगह ‘होली ऑफ होलीज’ यहीं है. यहूदी लोग इसे दुनिया के निर्माण का पहला कदम बताते हैं. उनका मानना है कि दुनिया के निर्माण की पहली ईंट यहीं राखी गई और यहीं अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुरबानी दी थी.
वहीं, अगर बात ईसाई हिस्से की हो तो यहां पवित्र सेपुलकर चर्च है, जो दुनियाभर के ईसाइयों के लिए बेहद खास है. ईसाइयों के अनुसार, ईसा मसीह को यहीं सूली पर लटकाया गया था, इसे कुछ लोग गोलगोथा भी कहते हैं.