त्रिपुरा : भगवा तो लहराया पर सीएम पद पर फंस रहा पेंच, बिना चेहरे के लड़ना बना चुनौती

नई दिल्ली। साल 2013 में भाजपा को जिस विधानसभा में एक भी सीट हाथ नहीं लगी थी अब वहां पार्टी भगवा परचम लहराने की तैयारी कर रही है। दरअसल साल 2013 में त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 1.5 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन इस बार पार्टी को यहां प्रचंड बहुमत मिल रहा है। इसलिए अब सभी उस इंसान का नाम जानने को बेकरार हैं, जिसे पार्टी सीएम बनाएगी।

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भगवा परचम

बता दें राज्य में जड़ें जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी ने बिना किसी चेहरे के ही विधानसभा चुनाव लड़ा था।

अब बंपर जीत के बाद लोग जानना चाह रहे हैं कि बीजेपी इस राज्य की जिम्मेदारी किस शख्स को देगी।

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इस रेस में फिलहाल दो नाम आगे उभर कर आ रहे हैं। ये दो नाम हैं बिपल्ब कुमार देब और सुनील देवधर।

खबरों की माने तो त्रिपुरा के बनमालीपुर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे बिपल्ब कुमार देब सौम्य व्यक्तित्व के मालिक हैं। वह इस वक्त त्रिपुरा बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं।

शनिवार (3 मार्च) जब बीजेपी नेता राम माधव त्रिपुरा के नतीजों पर प्रतिक्रिया देने आए तो उनके साथ बाईं ओर तिलक लगाकर बैठे शख्स बिपल्ब कुमार देब ही हैं।

बिपल्ब बेहद लो प्रोफाइल रहकर अपना काम करते हैं और उसे अंजाम तक पहुंचाने में पूरी शिद्दत के साथ जुड़े रहते हैं।

त्रिपुरा में इतने आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद नेशनल मीडिया में शायद ही उनका कोई बयान चर्चा का विषय बना हो।

बिपल्ब कुमार देब की सबसे बड़ी पूंजी है उनकी राजनीतिक शुचिता। साथ-सुथरे छवि के देब पर कोई भी आपराधिका मुकदमा नहीं है।

चुनावी शपथ पत्र में उन्होंने अपनी आय मात्र 2,99,290 रुपये बताई है। बिपल्ब कुमार देब की पत्नी बैंक में काम करती हैं, चुनाव आयोग के दस्तावेजों में उनकी कुल आय 9,01,910 रुपये बताई गई है।

बिपल्ब कुमार देब ने नेतृत्व, राजनीति और समाज की शिक्षा आरएसएस से पाई है। यहां पर आरएसएस के प्रचंड नेता के एन गोविंदाचार्य उनके मेंटर रहे हैं।

48 साल के बिपल्ब कुमार देब जब आज से 15 साल पहले दिल्ली में उच्च शिक्षा के लिए आए थे तो यहां पर वह जिम इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम भी कर चुके हैं।

2016 में जब उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाकर त्रिपुरा भेजा गया तो उनका ‘लोकल चेहरा’ होना उनके पक्ष में गया।

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खबरों के मुताबिक़ बीजेपी के एक महासचिव के हवाले से कहा है कि बीजेपी में भी उनकी स्वीकार्यता है और सीएम पद के वे प्रथम दावेदार हैं।

वहीं त्रिपुरा में बीजेपी की सफलता के पीछे एक बड़ा नाम बीजेपी के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर का भी है।

बता दें नवंबर 2014 में अमित शाह ने उन्हें त्रिपुरा का प्रभारी बनाकर भेजा था। उन्हें जो लक्ष्य दिया गया था, वो था- त्रिपुरा में बीजेपी को शक्तिशाली बनाना।

25 साल से वामपंथी शासन में बीजेपी को खड़ा करने की चुनौती को सुनील देवधर ने सहज स्वीकार किया और 3 साल से ज्यादा वक्त तक लगातार जुटे रहे। त्रिपुरा में बीजेपी का अपना संगठन नहीं था।

बांग्ला भाषा में एक्सपर्ट सुनील देवधर ने यहां पर सबसे पहला जो काम किया वो था त्रिपुरा के आदिवासियों की भाषा कोकबोरोक को सीखना।

यह भाषा राज्य के 31 फीसदी आबादी द्वारा बोली जाती है। इसे सीखने के बाद वह आदिवासियों से सीधा संपर्क स्थापित करने में सफल हुए।

सुनील देवधर आरएसएस में पहले ही काम कर चुके थे। त्रिपुरा में बनवासी कल्याण केन्द्र के जरिये संघ यहां पर सक्रिय भी था, लेकिन वह नाकाफी था।

लगातार संवाद के बाद सुनील देवधर मोदी सरकार की नीतियों को त्रिपुरा के लोगों तक पहुंचाने में सफल रहे और उनका विश्वास जीत सके।

भाजपा की जीत के बाद सीएम पद के लिए उन्हें भी दावेदार माना जा रहा है, लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने एक बयान में उन्होंने सीएम बनने से इनकार किया था।

फिलहाल अब यह तो पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा कि त्रिपुरा के सीएम पद पर इन दोनों में से किसे विराजित करना है। या फिर यह भी हो सकता है कि इस पद के लिए संभावनाओं से परे जाकर उन्होंने कोई नया नाम तय कर रखा हो।

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