
रामपुर। तीन तलाक को लेकर अभी भले ही कानून न बना हो, लेकिन इसकी आहट मात्र से ही मनमानी पर लगाम लगने लगी है। उत्तर प्रदेश के रामपुर में दारुल कजा (शरई अदालत) है, जहां तलाक के मामले भी हल होते हैं। यहां साल भर में तलाक के लगभग 30 मुकदमे आते थे, लेकिन कानून बनने से पहले ही इनकी संख्या कम हो गई है। अब केवल पांच मुकदमे चल रहे हैं। ये भी पुराने हैं। महीने भर से तीन तलाक का एक भी मामला दायर नहीं हुआ है।
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रामपुर मुस्लिम बहुल जिला है। यहां बड़ी तादात में मदरसे हैं। एक मदरसा ऐसा भी है, जहां दारुल कजा लगती है। जामे-उल-उलूम फुरकानिया मिस्टनगंज में यूं तो 1972 में दारुल कजा की स्थापना हुई, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से इसे 2011 में मान्यता मिली। यहां तलाक, मेहर और जायदाद आदि से संबंधित मुकदमे दायर होते हैं। इसके सदर शहर इमाम मुफ्ती महबूब अली, नायब सदर मुफ्ती मकसूद और काजी मौलवी मोहम्मद अयूब हैं।
मुफ्ती मकसूद कहते हैं कि तीन तलाक से संबंधित मुकदमे अब बहुत कम आ रहे हैं। पहले महीने में दो तीन मामले आ जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केवल दो मामले आए। उसमें समझौता करा दिया गया। अब एक माह से कोई मामला नहीं आया है।
यह होती है प्रक्रिया
काजी मोहम्मद अयूब ने प्रक्रिया के बारे में बताया कि जब कोई फरियादी आता है तो दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाता है। यहां मुकदमे की कोई फीस तय नहीं है। गरीब आदमी का खर्च मदरसा उठाता है, जबकि साधन संपन्न व्यक्ति से काजी साहब व गवाहों के मौके पर आने-जाने का खर्च लिया जाता है। कभी-कभी कोई लाचार या कमजोर होने की वजह से अदालत तक आने में मजबूर होता है तो काजी साहब मौके पर जाकर उसके बयान दर्ज करते हैं।
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22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया। इसके बाद केंद्र इसको लेकर कानून बनाने जा रहा है। इसमें सजा का प्रावधान किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस कानून बनाने को लेकर राज्यों से भी राय मांगी है। शरई अदालत के काजी मोहम्मद अयूब ने बताया कि जुलाई में तीन मुकदमे, जून में दो मुकदमे आए थे। सुप्रीम कोर्ट का आदेश 22 अगस्त को आया था। उसके बाद अगस्त में दो, सितंबर में एक, अक्टूबर में एक और नवंबर माह में कोई केस नहीं आया। दिसंबर में अभी तक कोई आवेदन नहीं मिला है।