प्रेगनेंसी के दौरान बढ़ रहा है इस विषाणु का खतरा, जानें क्या है सही इलाज

चेचक या चिकनपॉक्स त्वचा पर होने वाला एक रोग है। यह किसी भी उम्र में किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। इस रोग में शरीर से लाल रंग के पानी से भरे हुए दाने उभर आते हैं। यह एक संक्रमक रोग है। गर्मियों और बारिश के दिनों में इस रोग के होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। आइये आज इस खतरनाक बीमारी के बारे में जानते हैं।

आमतौर पर ये रोग खांसने, छींकने, छूने या रोगी के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इस बीमारी के दौरान पूरे शरीर पर दाग-धब्बे हो जाते हैं और तेज बुखार, सिरदर्द और ड्राई कफ की समस्या रहती है। अगर ये नियंत्रित न हो तो दिमाग और लिवर तक इसका असर पहुंच जाएगा। इसके बाद दूसरी बीमारियां आपको अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं।

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कैसे फैलता है चेचक

चेचक या चिकनक्स वेरीसेला जोस्टर नामक वायरस के कारण फैलता है। इस वायरस के कारण रोगियों के पूरे शरीर में फुंसियां होने लगती है। यह संक्रमण एक व्यकित से दूसरे व्यकित में काफी तेजी से फैलता है। इसलिए बच्चों के इस रोग से ग्रसित लोगों से दूर रखना चाहिए। चिकन पॉक्स के रोगी घर से कम से कम निकलें। रोगी के पास हमेशा साफा-सुथरा रखें। आप रोगी क पास जितनी सफाई रखेंगे उतना ही रोगी के लिए अच्छा होगा।

लक्षण

हल्का बुखार

हल्की खांसी

भूख में कमी

सर में दर्द

थकावट

उल्टियां

चिकनपॉक्स

प्रेगनेंसी

कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाली महिलाओं में यह रोग के बढ़ने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। नवजात शिशु में संक्रमण का खतरा 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। गर्भ ठहरने के 14 हफ्ते के बाद दी गई पावर बूस्टर डोज को वैरिसैला वायरस के बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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इलाज

जौ के आटे का पेस्ट बनाकर इसे प्रभावित हिस्से पर लगाएं या नहाएं।

नीम के पेड़ की डाल से मरीज की हवा करना।

इस डाल की पत्तियां हल्के से मरीज़ के शरीर को छुआने से खुजली में राहत मिलती है। त्वचा को न रगड़कर और अपने नाखून छोटे रखकर भी आप त्वचा के संक्रमणों से बच सकते हैं।

बुखार का इलाज किया जा सकता है लेकिन एस्पिरिन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, खासकर बच्चों के मामले में क्योंकि यह गंभीर प्रतिक्रियात्मक स्थिति बना सकती है।

अगर बुखार चार दिन से लगातार 102 डिग्री फैरेनहाइट से ज़्यादा हो तो तुरंत अपने डॉक्टर के पास संर्पक करें।

पस के कारण दिखने वाले बैक्टीरियल संक्रमण, लगातार उल्टी, सांस में तकलीफ और अन्य किसी रोग के गंभीर संकेत देते हैं।

 

 

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