आज है वासुदेव द्वादशी, पुत्रप्राप्ति के लिए इस व्रत का है विशेष महत्व

शास्त्रों में पुत्रप्राप्ति के लिए इस दिन विशेष महत्व बताया गया है। कहा गया है कि इस दिन व्रत और पूजन करने से मनुष्य को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। आज ही के दिन 24.07.18 को आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के उपलक्ष्य में वासुदेव द्वादशी पर्व मनाया जाएगा।भगवान् वासुदेव

कहा जाता है कि भगवान कृष्ण को समर्पित वासुदेव द्वादशी का पर्व देवशयनी के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वासुदेव स्वरूप के पूजन का विधान है। शास्त्र हेमाद्रि व वराह पुराण में वासुदेव द्वादशी का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। सबसे पहले इस व्रत का व्यखान देवऋषि नारद द्वारा यदुवंशी राजा वसुदेव व उनकी पत्नी देवकी को बताया था। पिता वसुदेव के नाम पर ही कृष्ण को वासुदेव अर्थात वसुदेव का पुत्र कहते हैं।

पूजन विधि: इस पर्व में भगवान वासुदेव के विभिन्न नामों व व्यूहों के साथ चरण से सिर तक के सभी अंगों की पूजा की जाती है। इस दिन लाल व पीले दो वस्त्रों से ढककर भगवान वासुदेव की स्वर्णिम प्रतिमा या सुनहरी चित्र का पूजन पानी भरे हुए पीतल के लोटे के ऊपर रखकर किया जाता है तथा लोटे समय प्रतिमा या चित्र का दान किया जाता है।

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इस पूजन में भगवान वासुदेव को हाथ का पंखा, टॉर्च-लैंप, लाल फूल व लाल फल चढ़कर उनकी पंचामृत से पूजा करके विष्णु सहस्रनाम का जाप करने का विधान है। घर की पूर्व दिशा में लाल कपड़ा बिछाकर पानी भरे हुए पीतल के लोटे पर भगवान वसुदेव का सुनहरी चित्र स्थापित कर विधिवत पंचोपचार पूजन करें। तांबे के दीपक में गौघृत का दीप करें, गुग्गल से धूप करें, लाल-पीले फूल चढ़ाएं, लाल चंदन चढ़ाएं, आम का फलहार चढ़ाएं, दूध-शहद पर तुलसी पत्र रखकर भोग लगाएं। इस विशेष मंत्र से का 1 माला जाप करें। पूजन के बाद भोग बच्चों में बांट दें।

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