सीधे लीवर पर वार करती है यह बीमारी, बिन बुलाए आती है मौत

गर्मियों में सभी बीमारियां तेजी से बढ़ती है। गर्मियों के मौसम में जीवाणु और भी ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए गर्मियों में ही अधिकतर सब बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। इस मौसम में हेपेटाइटिस का भी खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। वैसे तो हेपेटाइटिस हर मौसम में हो जाता है। लेकिन आजकल बढ़ते प्रदूषण के कारण हेपेटाइटिस के मामले कहीं ज्यादा बढ़ रहे हैं। जानते हैं हेपेटाइटिस के लक्षण और उपचार के बारे में।

हेपेटाइटिस

प्रकार

हेपेटाइटिस एक लीवर की बीमारी है। हेपेटाइटिस पांच प्रकार का होता है। हेपेटाइटिस ए,बी,सी,डी और ई। हेपेटाइटिस ए और ई प्रदूषित खाद्द और पेय पदार्थो के खाने की वजह से होता है। वहीं हेपेटाइटिस बी और सी खून की वजह से होता है। यह बीमारी एक दूसरे के संक्रमण में आने के कारण भी हो जाती है। दूषित र्सिरज के इस्तेमाल से रक्त में प्लाज्मा को दूषित कर दूसरे व्यक्ति को हेपेटाइटिस होने का खतरा बढ़ जाता है। टैटू गुदवाना, किसी संक्रमित व्यक्ति का टूथब्रश और रेजर इस्तेमाल करना और असुरक्षित शारीरिक संपर्क से हेपेटाइटिस बी व सी होने का जोखिम बढ़ जाता है। लंबे समय तक शराब पीने की लत भी हेपेटाइटिस का कारण बन सकता है। हेपेटाइटिस डी उन मरीजों को होता है, जो पहले से ही हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं।

लक्षण

पेट में दर्द रहना।

पीलिया (जॉन्डिस)होना।

भूख न लगना।

बुखार रहना।

उल्टियां होना।

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बचाव

सिर्फ हेपेटाइटिस ए और बी से बचाव के लिए टीके (वैक्सीन्स) उपलब्ध हैं।

पानी उबालकर या फिल्टर कर पिएं।

खाद्य व पेय पदार्थो की स्वच्छता का ध्यान रखें।

हेपेटाइटिस ए और ई का इलाज

हेपेटाइटिस ए और ई की अभी तक कोई दवा नहीं बनी है। जैसे लक्षण दिखते है उन्हीं के अनुरूप दवा दे दी जाती है। जैसे कि बुकार होने पर अलग दवा दी जाती है, पेट में दर्द होने पर अलग।

हेपेटाइटिस बी और सी की कुछ स्थितियां

पहली स्थिति

इसमें बीमारी तो होती है, लेकिन वह खुद ही ठीक हो जाती है।

दूसरी स्थिति

इसमें लीवर में हमेशा सूजन बनी रहती है। अगर ऐसा लगातार छह महीने तक होता रहे तो इसे क्रॉनिक हेपेटाइटिस कहते हैं। इस अवस्था में बीमारी का दवाओं से इलाज संभव है।

तीसरी स्थिति

इसमें इंसान को बीमारी का अहसास नहीं होता है। यह धीरे-धीरे शरीर में बढ़ती जाती है। यह बीमारी धीरे-धीरे इस हद तक बढ़ जाती है कि लीवर सिरोसिस और लिवर कैंसर तक का कारण बन जाती है। इसके वायरस हमेशा लीवर में बरकारक रहते हैं।

चौथी स्थिति

लीवर अचानक काम करना बंद कर देता है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में एक्यूट लीवर  फेल्यर कहते हैं। यह स्थिति जानलेवा होती है और इसका इलाज लीवर ट्रांसप्लांट है।

हेपेटाइटिस बी कैरियर

शरीर में हेपेटाइटिस बी का संक्रमण हुआ, लेकिन वायरस लीवर को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है,लेकिन वह वायरस लीवर से बाहर भी नहीं रहता है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में हेपेटाइटिस कैरियर कहते हैं।

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ध्यान दें

इस बीमारी में रोगियों को भूख नहीं लगती है। अगर रोगी कुछ खाता भी है तो उसे वो लगता नहीं है। उसका हाजमा खराब हो जाता है। इसलिए इस बीमारी में रोगियों को कुछ हल्का भोजन ही अपनी डाइट में रखना चाहिए।

बाहर का तला-भुना खाना तो कभी भी नहीं खाना चाहिए।

हेपेटाइटिस के रोगियों को कार्बोहाइड्रेट्स का सेवन पूरी मात्रा में करना चाहिए। इसके लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा रोटियां खानी चाहिए।

मरीज को फल दें साथ ही घर से निकाले गए फलों का रस भी दें। फलों को खाने से पहले अच्छे से धो लेना चाहिए।

रोगियों को किसी भी हालत में शराब के सेवन से बचना चाहिए।

एक निश्चित अंतराल पर रोगी को पर्याप्त मात्रा में पानी, तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे सोडियम और पौटेशियम) देना चाहिए।

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