‘पैड वुमन’ बन कायम की मिसाल, लाखों की सैलरी भी रोक नही पाई रास्ता

अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ दर्शकों के सामने आ चुकी है। फिल्म में अक्षय कुमार, राधिका आप्टे और सोनम कपूर मुख्य किरदारों में हैं। अक्षय की  फिल्म पैडमैन रुढ़िवादी परम्पराओं को सिरे से ख़ारिज करती हुई पीरियड्स के दौरान महिलाओं की समस्याओं को उजागर करने के उद्देश्य से बनाई गयी है। भारत में जहां लोग ऐसे गंभीर विषयों पर अपनी राय व्यक्त करने में असहज महसूस करते हैं, वहां ऐसी फिल्म के लिए अक्षय को काफी तारीफ मिल रही है।

पैड वुमन

फिल्म अक्षय के रूप में आपको अरूणाचलम मुरूगनाथन से मिलाती है। मुरूगनाथन वही शख्स हैं जिन्होंने ग्रामीण महिलाओं की परेशानी दूर करने के लिए उनकी खातिर सस्ते सैनेटरी नैपकीन बनाने की मशीन तैयार की थी। ये फिल्म उन्ही के द्वारा किये गये संघर्ष की दास्ताँ समेटे है।

पैडमैन के बाद अब एक पैडवुमन की कहानी बताने की बारी है। जो महिलाओं की इस समस्या पर खुद उनके लिए किसी मिसाल से कम नही हैं।

आज हम आपको मिला रहे हैं ‘पैडवुमन’ सुहानी मोहन से, जिन्होंने लाखों रुपये की सैलरी वाली जॉब छोड़कर महिलाओं की खातिर कुछ करने की ठानी।

सुहानी ने बताया कि उनकी मां न्यूक्लियर साइंटिस्ट हैं और वह बचपन से ही सुहानी को ‘इंदिरा नूई’ की तरह बनने के लिए प्रेरित करती थीं। सुहानी के अनुसार उन्होंने 2011 में आईआईटी मुंबई से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने बैंक में इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर नौकरी की।

वह बैंक की सीएसआर गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं। इसी दौरान वह ग्रामीण महिलाओं की परेशानी से रूबरू हुईं।

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सुहानी ने बताया, ”मैंने देखा कि महिलाएं पीरियड के दौरान सफाई को लेकर जागरूक नहीं हैं। गांवों में हालत इतनी बदतर थी कि महिलाएं सैनिटरी नैपकीन इस्तेमाल नही करती थीं। वे लोग कपड़े का इस्तेमाल करते थे और सफाई न होने की वजह से स्वास्थ्य की कई परेशानियों से जूझती थीं।”

हालातों को देखकर सुहानी ने इनकी मदद करने की ठानी और इस तरह शुरू हुआ उनका ‘पैडवुमन’ का सफर।

इस आइडिया को लेकर उनके माता-पिता खुश नहीं थे। उन्हें सुहानी का ये बिजनेस आइडिया पसंद नहीं आया। उन्हें अपने माता-पिता को मनाने में 2 महीनों से भी ज्यादा का समय लगा। सुहानी बताती हैं कि परमिशन देने से पहले उनके माता-पिता ने उनके आइडिया को अपने स्तर पर जांचा-परखा, कई सवाल पूछे और फिर आखि‍र मान गए।

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सुहानी ने ग्रामीण महिलाओं को समस्याओं से जोड़ते हुए सस्ते सैनेटरी नैपकीन बनाने की योजना पर काम शुरू किया। उनका फोकस न सिर्फ सस्ते पैड बनाने पर था, बल्कि इन्हें बाजार में मौजूद महंगे सैनिटरी नैपकीन के मुकाबले क्वालिटी के स्तर पर खड़ा करना भी था।

उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत महज 2 लाख रुपये के खर्च  से की, दोस्तों के साथ मिलकर इसके लिए मशीन तैयार की। आज सुहानी अपने स्टार्टअप की बदौलत न सिर्फ अपने स्वावलम्बी बनने के सपने को पूरा कर रही हैं बल्किद ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदलने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं

अपने सफर की शुरुआत में वह अरूणाचलम मुरूगनाथन की फैक्ट्री में भी गई थीं जिसके बाद उन्हें अपने काम की सफलता पर भरोसा बढ़ा।

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