पहले से मंज़ूरी लिए बिना अपनी विदेशी शाखाओं में पूंजी लगा सकेंगे बैंक, RBI की बैंकों को बड़ी छूट

RBI (Reserve Bank of India) ने बुधवार (8 दिसंबर) को छूट देते हुए कहा कि, “बैंकों को उसकी पूर्व मंज़ूरी के बिना उनकी विदेशी शाखाओं में पूंजी लगाने और साथ ही मुनाफ़े को वापस लाने की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते कि कुछ नियामक पूंजी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। इस समय देश में स्थापित बैंक RBI से पूर्व मंज़ूरी लेकर अपनी विदेशी शाखाओं और अनुषंगियों में निवेश कर सकते हैं, इन केंद्रों में लाभ बनाए रख सकते हैं और मुनाफ़े को वापस अपने पास ला सकते हैं और उसका हस्तांतरण कर सकते हैं।”

RBI की द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए बुधवार (8 दिसंबर) को, RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा की, “बैंकों को कारोबार संबंधी लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से यह फ़ैसला लिया गया है कि, बैंकों को नियामक पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं है। इस संबंध में अलग से निर्देश जारी किए जा रहे हैं।”

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा निवेश पोर्टफ़ोलियो के वर्गीकरण और मूल्यांकन पर मौजूदा नियामक निर्देश क़ाफ़ी हद तक अक्टूबर 2000 में शुरू किए गए ढांचे पर आधारित हैं, जो तत्कालीन प्रचलित वैश्विक मानकों और सर्वोत्तम प्रथाओं पर आधारित है। RBI गवर्नर ने कहा कि, “निवेश के वर्गीकरण, माप और मूल्याँकन संबंधी वैश्विक मानकों के बाद के महत्वपूर्ण घटनाक्रम, पूँजी पर्याप्तता ढांचे के साथ-साथ घरेलू वित्तीय बाज़ारों में प्रगति के मद्देनज़र, इन मानदंडों की समीक्षा की और उन्हें अद्यतन करने की ज़रूरत है। इस दिशा में एक क़दम के रूप में, एक चर्चा पत्र जल्द ही RBI की वेबसाइट पर टिप्पणियों के लिए डाला जाएगा। इस पत्र में सभी अहम पहलू शामिल होंगे।”

दास ने बताया कि, “लिबोर (लंदन इंटरबैंक आफ़र्ड रेट) व्यवस्था का बंद होना तय है। ऐसे में इस व्यवस्था के बंद होने पर उधारी को लेकर किसी भी व्यापक रूप से स्वीकृत अंतरबैंक दर या वैकल्पिक संदर्भ दर (ARR) को मानक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। फ़िलहाल विदेशी मुद्रा बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ECB)/व्यापार कर्ज़ (TC) के मामले में 6 महीने के लिबोर दर या अन्य किसी 6 महीने के अंतरबैंक ब्याज दर व्यवस्था को लागू किया जाता है।”

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