कांग्रेस के सबसे मुश्किल दौर में राहुल ‘राज’ का आगाज़, क्या हैं बड़ी चुनौतियां

अध्यक्षनई दिल्ली। जनवरी, 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष चुने गये राहुल गांधी अब पार्टी अध्यक्ष बन चुके हैं। इस बात का औपचारिक ऐलान पार्टी ने सोमवार को किया है। वैसे तो पार्टी से जुड़े युवाओं के लिए यह किसी बड़ी खुशखबरी से कम नहीं है। लेकिन इस बात से परे पार्टी के बागी नेता शहजाद पूनावाला ने राहुल की अध्यक्षता के खिलाफ प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है। अब कांग्रेस पार्टी और राहुल के राजनीतिक भविष्य के लिए यह कितना बड़ा टर्निंग पॉइंट होगा। यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।

बता दें राहुल अध्यक्ष पद संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के छठे और कांग्रेस के 60वें सदस्य हैं।

ऐसे में अध्यक्ष पद पर बैठकर उन्हें आगे चलकर कई चुनौतियों का सामना करना है। ख़बरों के मुताबिक शहजाद पूनावाला के अलावा भी कई छोटे-बड़े नेता गाहे-बगाहे राहुल गांधी का विरोध करते रहे हैं, ऐसे में उनके सामने सबसे मुश्किल काम पार्टी में खुद को ऐसे नेता के तौर पर स्थापित करने का है, जिसके पीछे पूरी पार्टी खड़ी हो सके।

यह भी पढ़ें:-1 रुपये वेतन लेने वाले DNA फिंगरप्रिंट के जनक लालजी सिंह का निधन

वहीं दूसरी ओर लगातार चुनावों में हार के कारण कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बिल्कुल निचले पायदान पर पहुंच चुका है। ऐसे में जरूरत है ऐसे नेता की जो उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा सके।

कैडर के हिसाब से आज भी कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी है और देश में उसके लाखों कार्यकर्ता हैं। लेकिन पार्टी की लगातार बुरी गत के कारण ज्यादातर कार्यकर्ता निष्क्रिय हो चुके हैं, ऐसे में जरूरत है उन सब को सक्रिय करके पार्टी की जड़ें मजबूत करने की। जिससे आगामी चुनावों के लिए कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा को टक्कर दे सके।

आंकड़े बताते हैं सबसे मुश्किल दौर राहुल ‘राज’ में

-पंडित नेहरु ‘राज’- (1951) देश के 90 फीसदी इलाकों में कांग्रेस का शासन था

-इंदिरा गांधी ‘राज’- (1959) देश के 90% इलाकों में कांग्रेस का शासन

-राजीव गांधी ‘राज’- (1985) देश के 67 फीसदी इलाकों में पार्टी का शासन

-सोनिया गांधी ‘राज’- (1998) देश के 19% इलाकों में कांग्रेस का शासन

-राहुल ‘राज’- (2017) देश के 10 फीसदी इलाकों में कांग्रेस का शासन

नेहरू-गांधी परिवार के अध्यक्ष पद का इतिहास

132 साल पुरानी कांग्रेस में सोनिया सबसे ज्यादा 19 साल से अध्यक्ष रही। इससे पहले इंदिरा गांधी 1959 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई थीं, पर सांसद पहली बार 1967 में चुनीं गईं। वहीं राजीव गांधी 1981 में सांसद बने और अध्यक्ष 1985 में चुने गए।

इसके अलावा सोनिया 1998 में अध्यक्ष बनीं, सांसद पहली बार 1999 में चुनी गईं। वहीं 2004 में पहली बार सांसद बने थे राहुल, 2017 में अध्यक्ष बनाये गये हैं।

सबसे बड़ी चुनौती लगभग खो चुके विपक्ष में जान फूंकना

राहुल के सामने एक बड़ी चुनौती लगभग शून्य हो चुके विपक्ष और उसके एक सर्वमान्य नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की भी है। भाजपा के लगातार सभी राज्यों में जीत का एक बड़ा कारण कमजोर पड़ता विपक्ष भी है, जिसके कारण भाजपा को कहीं कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल पाती।

यह भी पढ़ें:- बारात में झमक कर हुआ तमंचे पे डिस्को, चपेट में आए तीन बच्चे

ऐसे में राहुल अगर विपक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी और विपक्ष के नेता के तौर पर खुद को मजबूती से स्थापित कर पाते हैं तो इसका बड़ा अंतर देखने को मिलेगा।

वर्तमान में विपक्ष में कोई इस कद का नेता नहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुकाबले में खड़ा हो सके, अगर राहुल गांधी यह कारनामा कर पाते हैं तो इसका सीधा लाभ उनकी पार्टी को मिलेगा।

भाजपा विरोधियों पार्टियों को एक मंच पर लाना

भाजपा विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाकर उन्हें भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करना भी राहुल के लिए मुश्किल टास्क होगा। एक दौर में कांग्रेस पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक के अलावा ओबीसी वोटरों की पसंदीदा हुआ करती ‌थी, लेकिन पार्टी नेताओं की लगातार अनदेखी के कारण पार्टी का यह जनाधार धीरे-धीरे खिसकता चला गया। नतीजतन कांग्रेस को एक के बाद एक लगातार हार का सामना करना पड़ा।

कभी मुस्लिम और दलित कांग्रेस का पुख्ता वोट बैंक होते थे, लेकिन एक दौर में आकर पार्टी ने उन्हें अपनी बपौती मान लिया जिसका नतीजा हुआ कि मुस्लिम वोट बैंक को सपा मुखिया मुलायम सिंह ने अपनी ओर मोड़ लिया जबकि दलित वोट बैंक को मायावती की बसपा ले उड़ी।

यह भी पढ़ें:- अय्यर के घर हुई थी पाक उच्चायुक्त की बैठक, पूर्व सेनाध्यक्ष ने खोले राज

ऐसे में राहुल के सामने बड़ी चुनौती अपने इस प्रमुख वोट बैंक को वापिस लौटाने की भी है। बिना मुस्लिम और दलितों के जुड़े कांग्रेस पार्टी के उद्भाव की संभावना कम ही है।

सबसे बड़ा ‘टास्क’ आगामी लोकसभा में खुद को साबित करने की

अगर सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो राहुल के लिए 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी प्रबल दावेदारी साबित करना सबसे बड़ा टास्क माना जा रहा है।

दरअसल साल 2014 में भाजपा द्वारा किया गया तख्तापलट मोदी लहर के साथ जो सैलाब लेकर आया, उसमें सभी विपक्षियों एक हद तक अपना दम तोड़ दिया। एक के बाद एक होने वाले चुनावों में भाजपा का प्रबल प्रदर्शन अपना अलग ही कीर्तिमान स्थापित कर चुका है।

उसे टक्कर देना राहुल के लिए इतना आसान न होगा। उन्हें खुद के साथ अपनी पार्टी को इस तरह से तैयार करना होगा की उनकी बिगड़ी हुई छवि को सुधारा जा सके। लोग पार्टी को चुनाव चिन्ह से ही नहीं बल्कि उनके नाम से जाने और माने भी। तभी पार्टी का उज्वल भविष्य संभव है।

यह भी देखें:- 

LIVE TV