1 रुपये वेतन लेने वाले DNA फिंगरप्रिंट के जनक लालजी सिंह का निधन

डीएनए फिंगरप्रिंटवाराणसी। भारत में डीएनए फिंगरप्रिंट के जनक और बीएचयू के पूर्व कुलपति और पद्मश्री से सम्मानित डॉ. लालजी सिंह का 70 की उम्र में रविवार को निधन हो गया।

हार्ट अटैक के बाद उन्हें बीएचयू के आईसीयू में भर्ती कराया गया लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका। वह हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र के फाउंडर भी थे।

डॉ. लालजी ने इतने बड़े पेशे में होने के बावजूद कभी पैसे को तवज्जो नहीं दी। बीएचयू के वीसी पद पर रहने के दौरान उन्होंने सिर्फ 1 रुपये वेतन लिया। उन्होंने आणविक आधार पर लिंग परिक्षण, वन्य जीव संरक्षण, फरेंसिक और मानव प्रवास पर बहुत काम किया।

इसके साथ ही राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड और मंटू हत्याकांड जैसे केस को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था।

एसएसएल अस्पताल बीएचयू के सीएमएस डॉ. ओपी उपाध्याय ने बताया कि वह (लालजी) अपने जन्मस्थान जौनपुर के कलवारी गांव गए थे। वहां से वह दिल्ली जा रहे थे।

वाराणसी के एलबीएस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उन्हें दिल में दर्द उठा। उन्हें बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर लाया गया, लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका। संभवत: लालजी को दिल का दौरा पड़ा था।

डॉ. लालजी ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। उन्होंने 1995 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नॉस्टिक्स सेंटर शुरू किया। 2004 में जीओम फाउंडेशन शुरू किया। इसका

उद्देश्य था कि भारत के लोगो में जेनेटिक बीमारियों + को खोजकर उनका इलाज किया जाए। खासकर इस फाउंडेशन की शुरुआत ग्रामीण इलाकों और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए की गई।

डॉ. लालजी बीएचयू के 25वें वीसी बने। अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक आईआईटी + बीएचयू बोर्ड के चेयरमैन रहे। बीएचयू के वीसी के पहले वह सीसीएमबी के मई 1998 से जुलाई 2009 तक निदेशक रहे और 1995 से 1999 तक सीडीएफडी के ओएसडी रहे।

उनका जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता एक मामूली किसान थे।

उन्होंने बीएचयू से एमएससी करने के बाद कोशिका आनुवंशिकी में पीएचडी की। बाद में उन्हें डीएससी की डिग्री की उपाधि 2004 में दी गई।

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