
महाराष्ट्र की राजनीति में आज एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिला। मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे 20 साल बाद एक ही मंच पर नजर आए। हालांकि, दोनों पार्टियों के सामने कई चुनौतियां हैं, और इस साल के अंत में होने वाले स्थानीय चुनाव उनकी एकता की असली परीक्षा होंगे।

पिछले हफ्ते राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा राज और उद्धव ठाकरे के एकजुट होने की थी। आज मराठी विजय दिवस रैली में दोनों भाई लगभग दो दशक बाद एक मंच पर दिखे। राज ठाकरे ने 2006 में मतभेदों के कारण शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई थी। हालांकि, मनसे महाराष्ट्र की राजनीति में कोई खास मुकाम हासिल नहीं कर सकी, और शिवसेना यूबीटी भी बंटवारे के बाद कमजोर हुई है। यही वजह है कि दोनों भाइयों ने मराठी अस्मिता के नाम पर एक होने का फैसला किया। महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा फॉर्मूले के तहत हिंदी पढ़ाने के फैसले ने दोनों के एकजुट होने की जमीन तैयार की।
2005 में आखिरी बार दिखे थे एक साथ
राज और उद्धव ठाकरे आखिरी बार 2005 में एक मंच पर एक साथ नजर आए थे। उस समय नारायण राणे ने शिवसेना से बगावत कर कांग्रेस जॉइन की थी और मालवण विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे थे। शिवसेना ने राणे को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, और उद्धव व राज ठाकरे ने मिलकर शिवसेना उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था। हालांकि, उस समय उनकी जोड़ी वोटरों को आकर्षित करने में नाकाम रही, और नारायण राणे ने भारी बहुमत से जीत हासिल की, जिससे शिवसेना उम्मीदवार की जमानत भी जब्त हो गई।
कैसे शुरू हुआ एकजुट होने का सफर
कुछ महीने पहले, फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के साथ हाथ मिलाने के संकेत दिए थे। जब मांजरेकर ने पूछा कि क्या दोनों भाई अब भी एक हो सकते हैं, तो राज ने कहा, “महाराष्ट्र के अस्तित्व और इसके लोगों की भलाई के सामने हमारे मतभेद कुछ भी नहीं हैं। एक होना मुश्किल नहीं है, बस इसके लिए सही नीयत चाहिए। यह मेरे हितों की बात नहीं है, बल्कि हमें बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए।”
राज के बयान के बाद उद्धव ठाकरे ने भी तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने को तैयार हूं। मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं, लेकिन एक तरफ (भाजपा का) समर्थन करना और बाद में उनका विरोध करना, यह काम नहीं करेगा।”
बयानबाजी का दौर
इन बयानों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों भाइयों के एक होने की चर्चा तेज हो गई। हालांकि, कुछ नेताओं के बयानों ने भ्रम भी पैदा किया। मनसे नेता संदीप देशपांडे ने कहा, “राज ठाकरे शिवसेना यूबीटी के साथ गठबंधन तभी करेंगे, जब उनकी तरफ से कोई मजबूत और विश्वसनीय प्रस्ताव आएगा। हमें पहले कई बार धोखा मिला है, जैसे 2014 और 2017 में। अब अगर वे गठबंधन चाहते हैं, तो उन्हें राज ठाकरे को प्रस्ताव भेजना होगा, और वे उस पर फैसला लेंगे।”
जवाब में, शिवसेना यूबीटी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, “मराठी लोगों की भलाई के लिए उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे के साथ गठबंधन के लिए मन और दिल से तैयार हैं।” इनके अलावा कई अन्य नेताओं के बयानों से भ्रम की स्थिति बनी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा फॉर्मूले के फैसले ने इस भ्रम को खत्म कर दोनों भाइयों को एकजुट कर दिया।
हिंदी भाषा ने बनाई एकता की नींव
16 अप्रैल को भाजपा नीत महाराष्ट्र सरकार ने तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया, जिसका शिवसेना यूबीटी और मनसे ने विरोध किया। विरोध के बाद 17 जून को सरकार ने एक और प्रस्ताव जारी कर हिंदी को अनिवार्य से वैकल्पिक कर दिया। फिर भी विरोध जारी रहा, जिसके बाद 29 जून को सरकार ने तीन भाषा फॉर्मूला पूरी तरह वापस ले लिया। इस घटनाक्रम ने मनसे और शिवसेना यूबीटी के गठबंधन की नींव रखी। इसके बाद दोनों पार्टियों ने 5 जुलाई को साझा रैली करने की घोषणा की, और सरकार के फैसले को मराठी एकता की जीत के रूप में प्रचारित किया, यह दावा करते हुए कि सरकार उनकी एकजुटता से घबरा गई।
स्थानीय चुनाव होंगे एकता की कसौटी
इस साल के अंत में महाराष्ट्र में मुंबई, ठाणे, नासिक, नागपुर और पुणे जैसे शहरों में नगर निगम चुनाव होने हैं। ये चुनाव शिवसेना यूबीटी और मनसे की एकता की परीक्षा के लिए सही मौका होंगे। भले ही दोनों पार्टियों के नेता एक मंच पर आ गए हों, लेकिन यह देखना बाकी है कि उनके कार्यकर्ता मिलकर काम कर पाएंगे या नहीं। संगठनों को एकजुट करना दोनों पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती होगी, खासकर जब उनकी राजनीतिक शैली में बड़ा अंतर है। राज ठाकरे की आक्रामक शैली और उद्धव ठाकरे की समावेशी रणनीति के बीच सामंजस्य बिठाना आसान नहीं होगा, और गठबंधन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।