जवानी में किए अपराध की बुढ़ापे में मिली सज़ा

देहरादून। कोई भी अपराध चाहे जितना पुराना क्यों न हो लेकिन कानून से छिप नहीं सकता ऐसा ही एक 36 साल पुराना मामला दून की सीबीआई की गिरफ्त में आया है। टिहरी बांध निर्माण के दौरान प्रभावितों के मुआवज़ा घोटाले के 36 साल पुराने मामले में सीबीआई कोर्ट ने पीएनबी के दो रिटायर अधिकारियों को चार-चार साल की सजा का फरमान जारी किया साथ ही पीएनबी टिहरी के तत्कालीन प्रबंधक और सहायक प्रबंधक पर 25-25 हजार का जुर्माना भी लगाया।

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सीबीआई अधिवक्ता अमिता वर्मा के अनुसार अधिग्रहीत भूमि के लिए केंद्र सरकार से मुआवजा जारी हुआ था। उस वक्त मुआवज़े की रकम 1 करोड़ रुपये थी जो इनको दी गई। पीएनबी के तत्कालीन प्रबंधक विनोद कुमार सिन्हा व सहायक प्रबंधक अशोक कुमार गावा निवासी पीएनबी एन्क्लेव, शिमला रोड देहरादून ने बैंक में अपना फर्जी खाता खुलवाया और एफडीआर बनाकर यह रुपये जमा करा दिए। बाद में जो भी ब्याज आया उसे ओरोपियों ने आपस में हड़प लिया और बाद में पात्रों में मुआवजा राशि को बांटा गया।

सीबीआई ने 1991 में केस दर्ज कर दोनों अफसरों संग टिहरी के तत्कालीन एसएलईएओ एसडी भट्ट, क्लर्क मोहन दास और डीपी काला को भी आरोपी बनाया। 1997 को अदालत में चार्जशीट दाखिल की गई। तीन दशक तक चले ट्रायल के बाद मंगलवार को विशेष अदालत ने वीके सिन्हा और एके गावा को चार-चार साल की सजा सुनाई। वहीं, एसडी भट्ट दोषमुक्त साबित हुए। लेकिन,  मोहन दास व काला की ट्रायल के दौरान ही मौत हो गई।

इस मामले में दोषी ठहराए गए दोनों अधिकारियों की उम्र अब 75 पार पहुंच गई है। जब उन लोगों ने इस घोटाले को अंजाम दिया था, तब उनकी लगभग उम्र 40 से कम थी। आपको बता दें मंगलवार को दोपहर 12 बजे वे परिजनों के साथ कोर्ट पहुंचे, कार्रवाई होने तक देर शाम तक कोर्ट में ही मौजूद रहे। दूसरा दोषी जो एक छड़ी का सहारा लेते हुए कोर्ट पहुंचा। इस मामले में दो आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है। सीबीआई की विशेष अदालत में अभियोजन की ओर से कुल 32 गवाह पेश किए गए।

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