अविश्वास प्रस्ताव से रुकेगा PM मोदी का विजय रथ, जानिए क्या है नियम

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से महज एक साल पहले आंध्र प्रदेश की तेलुगू देसम पार्टी (तेदेपा) शुक्रवार को केंद्र के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हो गई। इस बात की जानकारी देते हुए तेदेपा के राज्यसभा सांसद वाई. एस. चौधरी ने कहा कि, “हां, हमारी पार्टी (तेदेपा) राजग गठबंधन से अलग हो गई है।”

अविश्वास प्रस्ताव

आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर हुए मतभेद पर TDP ने नैशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (एनडीए) से किनारा करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग की है।

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आंध्र प्रदेश के सीएम और टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है। वाईएसआर कांग्रेस ने भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। इस बीच कांग्रेस ने भी इस पर साथ देने का ऐलान कर दिया है।

क्या है अविश्वास प्रस्ताव और प्रक्रिया

अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में स्वीकृति दिलाने के लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन ज़रूरी है। ख़ास बात ये है कि अगर ऐसा हुआ तो यह मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास होगा।

बता दें कि कांग्रेस के कुल 48 सांसद हैं। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP के 16 और YSR कांग्रेस के 9 सांसद हैं। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी 50 का आंकड़ा विरोधी खेमे के पास मौजूद है।

भारतीय जनता पार्टी की बात करने तो इस प्रस्ताव से उसे पार्टी को विशेष नुक्सान नहीं होगा। लोकसभा में पार्टी के पास अकेले ही 274 सांसद हैं और बहुमत साबित करने के लिए 272 सांसदों का आंकड़ा होना चाहिए।

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लोकसभा में क्या है समीकरण

543 सदस्यीय लोकसभा में फिलहाल 536 सांसद हैं। इसमें बीजेपी के 273 सदस्य हैं, जबकि सहयोगी दलों के 56 सदस्य हैं। फिलहाल की स्ट्रेंथ के हिसाब से बहुमत के लिए 536 सदस्यों के आधे से एक अधिक यानी 269 सांसदों के आंकड़े की जरूरत है।

ऐसे में बीजेपी अपने दम पर ही सरकार में बनी रह सकती है। यानी अगर अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर भी लिया जाता है तो निश्चित तौर पर यह गिर जाएगा।

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