नई ईवीएम बचा पाएगी अपनी खोई इज्जत? दावे पहले से भी बड़े

नई दिल्ली। बीते साल यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली धाकड़ जीत ने सभी के दिलों में ईवीएम मशीन को लेकर एक संदेह पैदा कर दिया था। ख़ास कर विपक्षियों ने इस बात पर बड़ा ऐतराज जताया था कि चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के उद्देश्य से ईवीएम मशीन में छेड़छाड़ की गई। इसके बाद सुर और बुलंद होते गए और चुनाव आयोग को भी निशाने पर लिया जाने लगा।

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ईवीएम मशीन

इन्हीं शंकाओं को मिटाने के लिए भारतीय दिग्गजों ने नई ईवीएम मशीन इजाद की है, जिसपर दावा किया जा रहा है कि कोई भी हेरफेर मुमकिन नहीं है।

खबरों के मुताबिक़ मई में कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव नई EVM मशीनों से होंगे। चुनाव आयोग ने बुधवार को न्‍यू जेनरेशन ईवीएम को लॉन्‍च किया है। इसे मार्क 3 नाम दिया गया है।

चुनाव आयोग का कहना है कि छेड़छाड़ प्रूफ इस ईवीएम में कई खूबिया हैं।

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इस ईवीएम की चिप को रिप्रोग्राम नहीं किया जा सकता है। यानी सिर्फ एक बार ही सॉफ्टवेयर कोड लिखे जाएंगे। ख़ास यह इंटरनेट या किसी नेटवर्क से इस ईवीएम को लिंक नहीं किया जा सकता है।

अगर कोई इसे ओपन करना चाहे या छेड़छाड़ करना चाहे तो एक स्‍क्रू भी हटने पर यह ईवीएम ऑटोमैटिक शटडाउन हो जाएगी।

पुराने मार्क 2 ईवीएम में सिर्फ 4 बैलेट यूनिट और 64 कैंडिडेट की जानकारी सेव होती थी। वहीं अब नए ईवीएम में 24 बैलेट यूनिट और 384 कैंडिडेट की जानकारी सेव की जा सकती है।

बता दें इसे भारत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड और बेंगलुरु एंड इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया तैयार करती है।

सॉफ्टवेयर भी यही लिखे जाते हैं। इसके बाद ही उसे चिप बनाने वाली अमेरिकी या जापानी कंपनियों को दिया जाता है।

ट्रायल के तौर पर कर्नाटक चुनाव में 1800 सेंटरों पर नए ईवीएम का इस्‍तेमाल होगा।  2019 आम चुनाव में हर सेंटर पर इसे इस्‍तेमाल करने की योजना है।

आपको बता दें कि 1977 में ईवीएम का विचार आया था, वहीं नवंबर 1998 में मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और नई दिल्‍ली के कुछ सेंटरों पर ईवीएम का पहली बार इस्‍तेमाल हुआ था।

ईवीएम के पहले वर्जन मार्क 1 को 1989 से 2006 के बीच तैयार किया गया। इसका आख़िरी इस्‍तेमाल 2014 के आम चुनाव में हुआ था।

वहीं दूसरे वर्जन मार्क 2 कसे 2006 से 2012 के बीच तैयार किया गया। इसमें रियल टाइम क्‍लॉक और डायनमिक कोडिंग जैसे फीचर को शामिल किया गया था।

हालांकि ईवीएम पर विरोध के बाद भी चुनाव आयोग ने एक सिरे से ईवीएम में छेड़छाड़ की बात को नकार दिया था। आयोग का दावा था कि ईवीएम में कोई भी फेरबदल हो पाना मुमकिन नहीं।

आम आदमी पार्टी ने तो आयोग के इस दावे के विरोध में मशीन का एक नमूना पेश कर होने वाला फेरबदल कैसे मुमकिन है, ये दर्शाने की कोशिश की थी। पर किसी भी तरह उनकी दाल गल नहीं पाई।

बाद में ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट मशीन को अटैच करने की बात को प्रमुखता से देखा गया और इसे बेहतर विकल्प बताया गया था।

अब जब ईवीएम मशीन को नए रूप में पेश कर उस शंका को मिटाने की कोशिश की जा रही है, ताकि चुनावी प्रक्रिया पर लोगों की विश्वसनीयता कायम रहे तो ऐसे में भविष्य में इसका उपयोग ही बता पाएगा कि ये दावा कितना खरा उतरता है।

इसके साथ ही ये भी बड़ा सवाल खड़ा होता है कि यदि वाकई में बीते साल हुए चुनावों से लेकर अब तक ईवीएम पर लगाए जाने वाले सभी आरोप गलत थे तो इसे नया प्रारूप देने की जरूरत क्यों रही।

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