देश के 45वें चीफ जस्टिस बने दीपक मिश्रा, इन ऐतिहासिक फैसलों से छोड़ी अगल ही छाप

सुप्रीम कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीशनई दिल्ली। भारत में कई ऐतिहासिक फैसले लेने वाले जस्टिस दीपक मिश्रा सुप्रीम कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीश बने हैं उन्होंने जस्टिस जे एस खेहर का स्थान लिया है। इस मौके पर सोमवार को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद की शपथ दिलाई है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई गणमान्य लोग भी वहां मौजूद थे।

सोमवार सुबह राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक दरबार हाल में एक समारोह आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायमूर्ति मिश्रा को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस का कार्यकाल 3 अक्टूबर 2018 को समाप्त होगा।

सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र ने पूर्व में ऐसे कई फैसले लिए हैं जो कि भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए हैं। हम आपको उनके द्वारा लिए गए ऐसे ही कुछ फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने काफी हद तक भारत की दशा और दिशा बदलने का काम किया है और भारतीय इतिहास में एक अलग ही छाप छोड़ी है।

ये हैं वो ऐतिहासिक फैसले-

सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान अनिवार्य – पूरे देश के सिनेमा घरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने वाले कोई और नहीं बल्कि जस्टिस दीपक मिश्रा ही हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा की अगुवाई वाली की बेंच ने ही सुप्रीम कोर्ट में 30 नवंबर, 2016 को यह आदेश दिया था कि पूरे देश के सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान अनिवार्य होगा और इस दौरान वहां मौजूद सभी लोगों को खड़े भी होना होगा।

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24 घंटों के भीतर एफआईआर की कॉपी वेबसाइट पर डालना हुआ अनिवार्य – जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस सी नगाप्पन की पीठ ने 7 सितंबर, 2016 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह आदेश दिया था कि 24 घंटों के भीतर ही उन्हें एफआईआर की कॉपी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। यही नहीं दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए भी जस्टिस मिश्रा ने 6 दिसंबर, 2010 को दिल्ली पुलिस को भी ऐसे ही आदेश दिए थे।

आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता बरकरार – जस्टिस दीपक मिश्रा उस बेंच में भी शामिल थे जिसने 13 मई, 2016 को आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखने का आदेश दिया था। अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, सुब्रमणियम स्वामी और अन्य बनाम यूनियन के केस में यह फैसला सुनाया गया था।

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याकूब मेमन की फांसी पर लगाई मुंहर और देर रात लगी कोर्ट – भारत के इतिहास में पहली बार जिन जजों ने देर रात तक किसी मामले को लेकर सुनवाई की थी उसमें जस्टिस मिश्रा भी शामिल थे। दरअसल 1993 के मुंबई धमाकों के आरोपी याकूब मेमन ने अपनी फांसी से ठीक पहले सजा पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल की थी। वहीं इस मामले को लेकर 29-30 जुलाई 2015 की आधी रात को भी कोर्ट खुला था और सुनवाई चली थी। जिसें जस्टिस मिश्रा ने याकूब की सजा बरकरार रखते हुए सुबह पांच बजे फैसला सुनाते हुए उसकी याचिका रद्द कर दी थी और कुछ देर बाद ही आरोपी याकूब को फांसी दे दी गई थी।

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प्रमोशन में आरक्षण पर लगाई रोक – जस्टिस दीपक मिश्रा उन दो जजों की बेंच में भी शामिल थे जिन्होंने प्रमोशन में मिलने वाले आरक्षण पर रोक लगाई थी। बता दें कि उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण नीति का प्रावधान किया था। जिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी, वहीं जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

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