खड़ाऊ में छिपा है सेहत का गजब राज, आज ही से शुरू करें पहनना
हमारे देश की संस्कृति के चर्चे पूरी दुनिया में हैं। लेकिन कहीं न कहीं हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और विदेशी हमारी संस्कृति को ही अपना रहे हैं। खाने से लेकर पहनावे तक हम इन चीजों के आदी होते जा रहे हैं। एक जमाना था जब लकड़ी या पेड़ों की छाल या घास से फुटवियर बनाए जाते थे। इन्हें पादुका या खड़ाऊ कहते हैं। किसी जमाने में हर भारतीय के पांव में दिखने वाली खड़ाऊ या पादुका को आज सिर्फ़ बाबा या साधु ही पहनते नजर आते हैं।
भारत में पादुका या खड़ाऊ का चलन बहुत पहले से है। रामायण में भी खड़ाऊ का वर्णन मिलता है। भारत की भौगोलिक बनावट को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां की धरती पर चलना आसान नहीं। लकड़ी के खड़ाऊ न सिर्फ चलने में सहायक होते थे, बल्कि ये काफी आरामदायक भी थे।
भारतवर्ष में विभिन्न प्रकार के खड़ाऊ बनाए जाते थे। कहीं पर इन्हें पांव के आकार का बनाया जाता था तो कहीं पर मछली के आकार का। हाथी दांत या चांदी के भी खड़ाऊ बनाए जाते थे।
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फायदे
खड़ाऊ सस्ते, सुंदर, टिकाऊ होते हैं और इन्हें बनाने में भी अधिक लागत नहीं आती।
खड़ाऊ पहनने से आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है।
खड़ाऊ पैर के कुछ एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर प्रेशर बनाते हैं, जिससे शरीर में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है।
खड़ाऊ बनाने में किसी भी जानवर की हत्या नहीं की जाती।
खड़ाऊ पहनने से पांव को सर्दी भी नहीं लगती और खराब रास्तों पर चलना भी आसान हो जाता है।
खड़ाऊ भारतीय सभ्यता का हिस्सा हैं, इसे पहनने में शर्म महसूस नहीं होनी चाहिए।
खड़ाऊ पहनने से आपके पैरों की मांसपेशियों को आराम मिलता है, जिससे आपका शरीर और दिमाग तनावमुक्त होते हैं।