‘मुख्यमंत्रियों के कब्रिस्तान’ में पीएम मोदी को बुलावा दे रहे सिद्धारमैया, जाने क्या है पूरा माजरा

नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव का फैसला आने तक यहां का जिक्र सभी की जुबान पर बना हुआ है। हर कोई बेकरार है ये जानने को कि आखिर नतीजा आने के बाद भी बदली हुई हवा की बयार किसको ठिकाने लगाती है और किसको कर्नाटक का तख्त-ओ-ताज अता फरमाती है।

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कर्नाटक चुनाव

खैर इन सब मामलों के बीच एक बात और भी जो लोगों की दबी जुबां बयान करने की कोशिश कर रही है। बात है कर्नाटक के एक ऐसे जिले की, जिसे लेकर लोगों के दिलों में एक मिथक घर कर बैठा है।

कहा जाता है कि कर्नाटक के चामराजनगर में वो मनहूसियत है, जो अभी तक यहां (कर्नाटक) के किसी भी सीएम के लिए बदस्तूर गुजरी है। इस कारण इसे मुख्यमंत्रियों का कब्रिस्तान कहा जाने लगा।

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कहने का मतलब यह है कि इस जिले का दौरा करने वाला सीएम दोबारा कर्नाटक की सरजमीं पर अपना भविष्य मुकर्रर न कर पाया।

खबरों के मुताबिक़ कांग्रेस के सिद्धारमैया ने इस अंधविश्वास को दूर करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए।

अपने कार्यकाल में नौ बार चामराजनगर जाने वाले सिद्धारमैया अक्सर कहा करते थे कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के लिए वहां जाना जरूरी है।

दरअसल, कर्नाटक में 40 साल बाद सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री के तौर पर पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।

इससे पहले कांग्रेस के देवराज अर्स ने ऐसा किया था, लेकिन चामराजनगर का दौरा करने के बाद 1980 में हुए चुनाव में वह हार गए थे। तभी से चामराजनगर का अंधविश्वास कायम है।

उर्स के बाद सीएम बनने वाले आर गुंडु राव, राम कृष्ण हेगड़े, एसआर बोम्मई और वीरेंद्र पाटिल भी जब वहां का दौरा करने के बाद हार गए तो चामराजनगर को मुख्यमंत्रियों का कब्रिस्तान कहा जाने लगा।

वहीं एचडी कुमारस्वामी ने 17 साल बाद मई, 2007 में चामराजनगर का दौरा किया था। हालांकि खुद कुमारस्वामी ने बताया था कि उनके शुभचिंतकों और परिजनों ने उन्हें वहां नहीं जाने की सलाह दी थी।

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उनके बाद सीएम बनने वाले बीएस येदियुरप्पा और डीवी सदानंद गौड़ा ने कभी इस जिले की यात्रा नहीं कि लेकिन उनके उत्तराधिकारी जगदीश शेट्टार मई, 2013 में चुनाव से पहले वहां गए थे और इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे।

मोदी के चामराजनगर नहीं जाने पर सिद्धारमैया ने चुटकी लेते हुए कहा था कि पीएम वहां जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें अपनी कुर्सी जाने का खतरा है।

अब बातों का क्या कहा जाए ये तो बाते हैं। अब इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह इस बात पर कोई तर्क वितर्क कर पाना संभव नहीं। पर इतिहास के पन्नों पर दबी सच्चाई इसी बात की ओर  इशारा करती है कि जो भी कुछ इस जिले के बारे में कहा गया वो कहीं न कहीं हकीकत बन उस सीएम पर कहर बरपा गया, जिसने यहां की जमीं पर कदम रखा।

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