Chandrayaan 2: सुरक्षित है विक्रम लैंडर, ISRO ने दर्ज की यह 6 कामयाबी

कहते है दुनिया जहां पर खत्म होती है विज्ञान वहीं से शुरू होता है. विज्ञान में काफी सारे प्रयोग किए जाते हैं कुछ सफल होते है कुछ नहीं. लेकिन हर प्रयोग कुछ ना कुछ सिखाके ही जाता है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) का Chandrayaan-2 मून मिशन भी इसरो वैज्ञानिकों के लिए बहुत कुछ सीखाने वाला प्रयोग साबित हुआ है. कई टेक्रोलॉजी पहली बार विकसित की गई। अंतरिक्ष में कई प्रयोग पहली बार किए गए कक्षा बदलने के दौरान गति ज्यादा आगे बढ़ी।

ISRO

इसरो ने पहली बार बनाया लैंडर और रोवर

रूस ने पहले चंद्रयान-2 के लिए लैंडर देने की बात कही थी, लेकिन उसने कुछ समय बाद मना कर दिया था. इसके बाद इसरो वैज्ञानिकों ने फैसला किया कि वे खुद अपना लैंडर बनाएंगे. अपना रोवर बनाएंगे. इसरो वैज्ञानिकों ने दोनों को बनाया भी. लैंडर और रोवर को बनाने के लिए खुद ही रिसर्च किया. डिजाइन तैयार किया. फिर उसे बनाया. इन सबमें करीब 11 साल लग गए. ये सभी स्वदेशी तकनीक से बनाए गए. रोवर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था. वहीं, विक्रम लैंडर की शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था. बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया.

  1. पहली बार किसी प्राकृतिक उपग्रह पर लैंडर-रोवर भेजा

इसरो ने चंद्रयान-2 से पहले तक किसी उपग्रह पर लैंडर या रोवर नहीं भेजा था. ये पहली बार है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने किसी प्राकृतिक उपग्रह पर अपना लैंडर और रोवर भेजा. भले ही विक्रम लैंडर तय मार्ग और तय जगह पर सही से न उतरा हो, लेकिन वह चांद पर है. अगर सब सही रहता तो लैंडर और रोवर अभी चांद के वातावरण, जमीन, रासायनिक गुणवत्ताओं की जांच कर रहा होता. इसरो को चांद की खूबसूरत तस्वीरें मिल रही होतीं.

  1. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार भेजा मिशन

भारत दुनिया का पहला देश है और इसरो दुनिया की पहली स्पेस एजेंसी है, जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना यान पहुंचाया है. इससे पहले ऐसा किसी भी देश ने नहीं किया. भले ही मिशन पूरी तरह से सफल न हुआ हो, लेकिन विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अब भी है. इसरो वैज्ञानिक लगातार विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने में लगे हैं. ताकि उसे फिर से स्टार्ट करके कुछ प्रयोग करने लायक बनाया जा सके.

  1. पहली बार किसी सेलेस्टियल बॉडी पर लैंड करने की तकनीक विकसित की

इसरो वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी सेलेस्टियल बॉडी यानी अंतरिक्षीय वस्तु पर अपना यान लैंड कराने कि तकनीक विकसित की. क्योंकि, पृथ्वी को छोड़कर ज्यादातर सेलेस्टियल बॉडी पर हवा, गुरुत्वाकर्षण या वातावरण नहीं है. इसलिए विपरीत परिस्थितियों में किसी अंतरिक्षीच वस्तु पर अपना यान उतारने की तकनीक विकसित करना बड़ी चुनौती थी. लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने यह काम बेहद सटीकता से किया.

  1. पहली बार लैंडर-रोवर-ऑर्बिटर को एकसाथ लॉन्च किया

इसरो वैज्ञानिकों ने पहली बार इतने वजन का सैटेलाइट लॉन्च किया. आमतौर पर किसी सैटेलाइट में एक ही हिस्सा होता है. लेकिन, चंद्रयान-2 में तीन हिस्से थे. ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर. तीनों को एकसाथ इस तरह से जोड़ना था कि चंद्रयान-2 कंपोजिट मॉड्यूल बनकर जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के पेलोड फेयरिंग में आसानी से फिट हो जाए. इस काम में भी हमारे वैज्ञानिकों ने सफलता हासिल की. जबकि, यह काम आसान नहीं होता. आपको रॉकेट के सबसे उपरी हिस्से के आकार के अनुसार ही सैटेलाइट के आकार को बनाना होता है, ताकि उसमें वह फिट हो सके.

  1. विशेष प्रकार के कैमरे और सेंसर्स बनाए गए

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के लिए विशेष प्रकार के कैमरे और सेंसर्स बनाए. ये कैमरे चांद की सतह और अंतरिक्ष की तस्वीरें लेने में सक्षम हैं. साथ ही ऐसे सेंसर्स बनाए जो चांद की सतह, तापमान, वातावरण, रेडियोएक्टिविटी आदि की जांच कर सकें. इस काम में अहमदाबाद इसरो सेंटर के ज्यादातर युवा वैज्ञानिक शामिल थे. इस सेंटर से ही ज्यादातर सैटेलाइट्स के सेंसर्स आदि बनते हैं.

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