बाढ़ से ग्रस्त केरल कैसे मनाएंगा यह स्पेशल त्योहार

ओणम केरल का बहुत ही मनाया जाने वाला त्योहार है। जिसकी धूम हर स्थान पर रहती  है। लेकिन इस साल केरल में आई विनाश के कारण इस त्योहार की धूम थोड़ी कम पड़ गई है। इस दिन वहां के स्थानीय किसी मंदिर में जाकर पूजा नहीं करते हैं बल्कि अपने घर में ही रहकर पूजा करते हैं।

स्पेशल त्योहार

वैसे तो सावन के महीने में हर तरफ खूब हरियाली रहती है। लेकिन खासकर केरल में मौसम इस समय सुहावना बना रहता है। फसल पकने लगती है। ओणम का त्योहार हर साल इस महीने दस दिन के लिए मनाया जाता है। इस दिन फसल पकने की खुशी में लोग नई उमंग, आशा और नया विश्वास जागृत इसी प्रसन्नता से देवता और फूलों की देवी का पूजा किया जाता है।

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केरल में ओणम का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिस तरह दशहरे में दस दिन पहले रामलीलाओं का आयोजन होता है उसी तरह ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। ओणम हर साल श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को मनाया जाता है।

घर में की जाती है इस त्योहार की पूजा

केरल में ओणम त्योहार के लिए दस दिन पहले इस त्योहार की तैयारियां शुरु हो जाती है। हर घर को फूलों से सजाया जाता है। पूरे घर को अच्छे से साफ किया जाता है। इतना ही नहीं घर में फूलों का घर भी बनाया जाता है। इस त्योहार से पहले घर में विष्णु जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। घर में चारों तरफ दीप जलाए जाते हैं। बाद में पूजा-अर्चना की जाती है।

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ओणम के दौरान बनते हैं लजीज व्यंजन

इस त्योहार पर पचडी-पचड़ी, काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर’ भी बनाया जाता है। दूध की खीर बनाई जाती है। और इस भोजन को कदली के पत्तों पर परोसा जाता है। दरअसल ये सभी पाक व्यंजन ‘निम्बूदरी’ ब्राह्मणों की पाक–कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अहम भूमिका निभाते हैं। कहते हैं केरल में कई तरह के दूध के पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों में मूंग की दाल और चने के आटे का भी प्रयोग किया जाता है।

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