जिसका पहला हक़ वही हो रहे पानी से महरूम, उद्योगपतियों को प्रायोरिटी पर रख रही सरकार !

खून के आंसूनई दिल्ली। जहां एक ओर मूडीज रैंकिग में सुधार की रिपोर्ट पर केंद्र अपनी पीठ थपथपा रही थी और पूरा देश खुशी मना रहा था। वहीं देश की जनता की भूख मिटाने के लिए दिन रात अपना पसीना बहाने वाले अन्नदाता खून के आंसू बहा रहे थे। बता दें सरकार उन्हें खेती की मूल जरूरत कहलाने वाले पानी को देने में पाबंदी लगा रही है। इस कारण किसानों में काफी रोष है।

खबरों के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ में अत्यधिक सूखा पड़ने की वजह से सरकार ने ये कदम उठाया है। सरकार का कहना है कि पानी पर पहला हक उद्योगों का होगा। दूसरा हक जल संसाधन विभाग का और इसके बाद जो बचा हुआ पानी होगा उसे किसानों को मुहैया कराया जाएगा।

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इसके साथ ही गर्मी में धान की खेती करने वाले किसानों को पानी मुहैया नहीं कराया जाएगा। अगर किसी ने बोरिंग के माध्यम से सिंचाई की व्यवस्था की तो उसका बोरिंग जब्त कर लिया जाएगा, बिजली कनेक्शन काट दिया जाएगा।

सरकार का तर्क है कि राज्य में भूमिगत जलस्तर अपने निम्नतम स्तर पर चला गया है। ये खतरनाक स्थिति पर पहुंच चुका है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 42 जलाशय में 82 प्रतिशत पानी था। इस साल मात्र 49 प्रतिशत पानी रह गया है। ऐसे में किसानों को भूमिगत जल के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जा सकती।

बिलासपुर के स्थानीय अखबारों में छपी खबर के मुताबिक कमीश्नर टीसी महावर का कहना है कि बांधों और जलाशयों में उपलब्ध पानी का पहला उपयोग उद्योगों के लिए किया जाएगा।

इसके बाद पेजयल आपूर्ति के लिए रिजर्व वाटर रखा जाएगा। रिजर्व वाटर के बाद अगर जलाशयों-बांधों में पानी बचता है तो रबी फसल के रूप में दलहन और तिहलन की खेती के लिए किसानों को जल आपूर्ति की जाएगी।

जबकि जानकारों की माने तो हकीकत इससे उलट है। यूं कहिए की सरकारी लापरवाही को छिपाने का ये एक बेजोड़ तरीका है।

इस मामले में छत्तीसगढ़ के किसान नेता आनंद मिश्रा कहते हैं जिस पानी पर पहला हक किसानों का है, उसे छीनकर उद्योगों को दिया जा रहा है।

उनका कहना है कि वाटर लेवल इसलिए नीचे गया चूंकि अंडरग्राउंड पानी उद्योग को दे दिया गया है। वो भी 5 इंच की जगह 9 इंच बोर कर पानी दिया जा रहा है।

ये उद्योग जो पानी खींच रहे हैं उसके कारण जलस्तर हर दिन नीचे जा रहा है, ना कि किसानों के खेती करने के कारण।

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धान की खेती में जो पानी इस्तेमाल होता है उसमें 40 से 50 प्रतिशत तक पानी नीचे जाता है। इससे पानी वाटर लेवल को रिचार्ज करता है।

वहीं जब उद्योग के लिए पानी इस्तेमाल होता है तो खत्म ही होता है। हाल ये है कि राज्य के सैंकड़ों जलाशयों में आपूर्ति के लिए बूंदभर पानी नहीं है।

आनंद बताते हैं कि पिछले साल भी लगभग यही स्थिति थी। उस वक्त राज्य सरकार की ओर से एक सेमिनार बुलाया गया।

उन्होंने बताया कि जब इस बाबत सवाल किया गया, इससे निपटने के लिए क्या योजना है? तो सिवाय राहत कार्य के सरकार के पास कोई योजना नहीं थी।

आनंद मिश्रा के दावों की पुष्टि इस बात से भी होती है कि इस साल छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र से 4 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की मांग की है।

कमजोर मानसून के बाद इस बार रायगढ़ जिले में औसत से 18 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। अगस्त महीने के बाद मानसून के रूठने और कम बारिश के कारण ज्यादातर गांवों में खरीफ की फसल को नुकसान पहुंचा था।

राजस्व विभाग के रिपोर्ट के आधार पर 96 तहसील और 380 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया था। इसके बाद राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री से सूखा राहत के लिए मदद मांगी।

कम बारिश के कारण जिले में नवंबर महीन से ही भूजल स्तर नीचे जाने लगा है। पीएचई के आंकड़ों में जलस्तर कहीं पर 200 फिट से नीचे चला गया है। केवल बिलासपुर में 380 से अधिक हैंडपंप सूख चुके हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित एक रिपोर्ट पांच साल पहले आई थी। इसमें भारत में छत्तीसगढ़ के सात जिलों को सबसे अधिक प्रभावित बताया गया था। ये जिला हैं- कांकेर, धनतरी, रायपुर, महासमुंद, जांगीर, बिलासपुर और मुंगली शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ में किसानों के मुद्दों को उठाने वाले डॉ संकेत बताते हैं इस घोषणा से किसानों में भारी नाराजगी है। सबने तय किया है कि वो धान लगाएंगे। अगर सरकार ने कार्रवाई की तो जल सत्याग्रह करेंगे।

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उनके मुताबिक केवल धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं। लेकिन दूसरी फसल के लिए भी पानी नहीं दे रहे हैं।

सिंचाई के लिए बांध बनाई जाती है। सरकार को उपलब्धि के तौर पर अब ये भी बताना चाहिए कि इस बांध से कितने उद्योगों और उद्योगपतियों को फायदा होनेवाला है।

डॉ संकेत के मुताबिक पानी के हालात उतने खराब नहीं हैं, जितना सरकार बता रही है। सिंचाई जलाशयों में 65 प्रतिशत पानी अभी भी है।

असल बात ये है कि सीपत, मड़वा, रायगढ़ में पावर प्लांट लग रहे हैं। इनको पानी देना सरकार की टॉप प्रायोरिटी है। ये घोषणा केवल उद्योगपतियों के दवाब में किया गया है।

हाल ये है कि पिछले साल खरोरा इलाके के मुर्रा गांव के पास जो बांध है, उसे सरकार खोद रही थी। क्योंकि उसे सीमेंट प्लांट को देने का वादा किया था। किसानों ने आंदोलन किया, तब जाकर उसे रोका जा सका है।

वहीं इस मामले में जल संसाधन विभाग के सचिव एस। एस। बोरा का कहना है कि उद्योगपतियों के साथ जो एग्रीमेंट किया गया है उतना पानी उन्हें मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है। रही बात किसानों की तो प्रावधान के अनुसार उन्हें दलहन और तिलहन की खेती के लिए पानी दिया जाएगा। ग्रीष्मकालीन धान के लिए पानी देने का कोई प्रावधान नहीं है।

उनका कहना है कि ग्रीष्मकालीन धान खेती मुख्यतः संपन्न किसान ही करते हैं। इससे पहले कभी भी धान के लिए सरकार ने पानी नहीं दिया। इसलिए धान की खेती के लिए पानी मुहैया नहीं कराया जा सकता।

उन्होंने अपनी बातों में यह भी साफ़ किया कि राज्य में सूखा होने के कारण पहले पीने के लिए पानी को सुरक्षित रखा जाएगा। इसके बाद ही बचा हुआ पानी किसानों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।

इसके साथ ही उन्होंने पाने की मांग को लेकर बड़ा सवाल भी खड़ा किया। उन्होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन धान की खरीदारी होती नहीं है तो आखिर उसे उपजाने में किसान आखिर क्यूं व्यर्थ में मेहनत कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पानी की पूर्ती वाली बात को गलत तरीके से लिया गया है। साथ ही इस तरह की मांग निराधार है।

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