जिस फैसले पर आग-बबूला हो रही कांग्रेस, उसके जन्मदाता थे नेहरु

नई दिल्ली। कर्नाटक के चुनावी समीकरण को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों के भी माथे पर पसीना आ गया है। दरअसल, सियासी दांव-पेंच ही कुछ ऐसा हो चला है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। यह बता पाना मुश्किल साबित हो रहा है।

पंडित जवाहर लाल नेहरू

वैसे तो राज्यपाल के फैसले पर कांग्रेस कड़ा विरोध जता रही है। लेकिन उन्हें शायद यह नहीं पता है कि ऐसी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके कांग्रेस ने अपने समय में कई राज्यों में सरकार बनाई है।

सच तो यह भी है कि वह खुद सत्ता का दुरुपयोग कर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने से लेकर सबसे बड़े दल को सरकार बनाने से रोकने तक की तमाम कोशिशें कर चुकी है। यही नहीं कांग्रेस ने गवर्नर के ऑफिस का इस्तेमाल करते हुए विरोधी सरकारों को बर्खास्त करने और विपक्षी दलों को सरकार बनाने से रोकने जैस कई काम किए हैं।

आइए आपको विस्तार से समझाते हैं कि आखिर कांग्रेस युग में क्या-क्या हुआ। जो आज कर्नाटक राज्यपाल के फैसले पर इतना विरोध जाता रहे हैं।

दरअसल, यह बुराई नेहरू युग में ही शुरू हो चुकी थी। राज्यपालों की भूमिका को लेकर 1960 के दशक से ही सवाल उठने लगे थे। जब देश में कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त होने की शुरुआत हो रही थी।

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इसके पहले कई बार ऐसा देखा गया है कि केंद्र ने राज्यपालों को राज्य सरकारों के खिलाफ रिपोर्ट भेजने के लिए दबाव डाला और उन्होंने ऐसा किया। इन रिपोर्टों के आधार पर राज्य सरकारें बर्खास्त की गईं। 1980 में इंदिरा गांधी ने जनता सरकारों को बर्खास्त कर दिया। गवर्नरों के माध्यम से अपनी पसंद की सरकार बनवाने का प्रयास केंद्र सरकारें करती रही हैं। संविधान के अनुच्छेद 356 का खुलकर दुरुपयोग किया जाता है।

मद्रास (तमिलनाडु) – 1952

सन 1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरुपयोग शुरू हो गया था। जब मद्रास (अब तमिलनाडु) में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाय कम विधायकों वाली कांग्रेस के नेता सी। राजगोपालाचारी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। जोकि उस समय विधायक भी नहीं थे।

केरल- 1959

भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साल 1957 में चुनी गई। लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया।

यह हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री और नए भारत की आजादी के नायक पंडित जवाहर लाल नेहरू का कार्यकाल था। ऐसी तमाम खबरें आईं कि अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए के दबाव में सरकार ने ऐसा किया। केरल में नम्बूदरीपाद सरकार के खिलाफ सभी परंपरावादी एक हो गए थे। उसका विरोध कांग्रेस लेकर कैथोलिक चर्च, नायर सर्विस सोसाइटी और भारतीय मुस्लिम लीग तक ने किया।

बता दें यह भारत की पहली क्षेत्रीय सरकार थी जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।

हरियाणा- 1982

वर्ष 1979 में हरियाणा में देवीलाल के नेतृत्व में लोकदल की सरकार बनी। लेकिन तीन साल बाद 1982 में भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया। हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तवासे ने भजनलाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

राज्यपाल के इस फैसले से नाराज चौधरी देवीलाल ने राजभवन पहुंच कर अपना विरोध जताया था। अपने पक्ष के विधायकों को देवीलाल अपने साथ दिल्ली के एक होटल में ले आए थे। लेकिन ये विधायक यहां से निकलने में कामयाब रहे और भजनलाल ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया।

… जब इंदिरा गांधी ने उठाया मौके का फायदा (आंध्र प्रदेश- 1984)

आंध्र प्रदेश में पहली बार 1983 में एन.टी. रामाराव के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इसके बाद 1984 में तेलुगू देशम पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री एन.टी. रामाराव को हार्ट सर्जरी के लिए अचानक विदेश जाना पड़ा।

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इसी का फायदा उठाते हुए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति के द्वारा सरकार को बर्खास्त करवा दिया। राज्य के तत्कालीन वित्त मंत्री एन भास्कर राव ने दावा किया कि टीडीपी के विधायकों का बहुमत उनके साथ है और इस दावे को मानते हुए राज्यपाल ने सरकार को बर्खास्त कर दिया। हालांकि, बाद में रामाराव फिर मुख्यमंत्री बहाल हो गए।

जम्मू-कश्मीर- 1984

वर्ष 1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी।के। नेहरू ने केंद्र के दबाव के बावजूद फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया। बाद में केंद्र की सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट मंगवाई गई। राज्य सरकार को बर्खास्त किया गया।

गुजरात- 1996

साल 1996 में गुजरात में सुरेश मेहता मुख्यमंत्री थे। बीजेपी नेता शंकर सिंह वाघेला ने दावा किया कि उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है। तत्कालीन राज्यपाल ने मेहता से सदन में बहुमत साबित करने को कहा, लेकिन इसके पहले ही सदन में काफी हंगामा हुआ। जिसके बाद तत्कालीन संयुक्त मोर्चा सरकार ने दखल देकर मेहता सरकार को बर्खास्त कर दिया। दिलचस्प यह है कि तब यही देवगौड़ा साहब भारत के प्रधानमंत्री थे और वजुभाई वाला (अभी कर्नाटक के राज्यपाल) राज्य सरकार में एक मंत्री।

कर्नाटक- 2009

यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हंसराज भारद्वाज को 25 जून, 2009 को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। भारद्वाज ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया।

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इस बर्खास्तगी पर राज्यपाल ने तर्क दिया कि येदियुरप्पा सरकार ने फर्जी तरीके से बहुमत हासिल किया है।

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