
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था के बिगड़ते हालत का मुद्दा उठाते हुए मोदी सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने न केवल इसे ‘‘जुमलों की सुनामी’’ करार दिया बल्कि सरकार के दावों को हकीकत से दूर बताया। इसके साथ ही उन्होंने राज्यसभा में एक के बाद एक धाकड़ सवाल दाग दिए।
खबरों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2018-19 के आम बजट पर चर्चा की शुरूआत करते हुए चिदंबरम ने मोदी सरकार के चौथे बजट को ‘‘जुमलों की सुनामी’’ करार दिया और सरकार से 12 सवाल पूछे।
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चिदंबरम ने पूछा कि आपने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था, उसका क्या हुआ? उन्होंने सरकार से रोजगार की उसकी अपनी परिभाषा बताने और पिछले चार सालों में सृजित रोजगारों की संख्या का खुलासा करने की मांग करते हुये पूछा कि क्या सरकार आईएलओ को पकौड़ा बेचने को भी रोजगार की परिभाषा में शामिल करने का सुझाव देगी।
चिदंबरम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से इन सवालों के जवाब देने की अपेक्षा व्यक्त करते हुये सरकार के तीन जुमलों का जिक्र किया।
उन्होंने किसानों को उपज का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य मुहैया कराने के सरकार के दावे को पहला जुमला बताते हुये कहा कि सरकार ने पिछले दो सालों में समर्थन मूल्य में सिर्फ पांच रुपये की बढ़ोतरी की।
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इसे किसानों के साथ धोखा बताते हुये उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के दस साल के कार्यकाल में समर्थन मूल्य में 100 प्रतिशत वृद्धि हुयी थी।
रोजगार सृजन के आंकड़ों को बजट में छुपाने का आरोप लगाते हुये चिदंबरम ने कहा कि पिछले चार साल में सरकारी आंकड़ों में लगातार रोजगार के अवसर बढ़ने का दावा किया गया है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगातार घट रहा है।
इसे दूसरा जुमला बताते हुये उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश बन गया है जिसमें जीडीपी घटे और रोजगार बढ़ें।
सत्ता पक्ष के सदस्यों के भारी शोर शराबे के बीच चिदंबरम ने सरकार पर बीते चार सालों से सिर्फ जुमलों की बारिश करने का आरोप लगाया।
उन्होंने बजट की घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के बारे में किये गये दावों को हकीकत से दूर बताते हुये कहा कि सरकार के आधारहीन दावों के कारण ही राजकोषीय घाटा अब के शीर्ष स्तर पर और विकास दर न्यूनतम स्तर पर आ गयी है।
उन्होंने सरकार पर आंकड़ों को छुपाने का आरोप लगाते हुये कहा कि पिछले चार सालों में आर्थिक वित्तीय घाटा बढ़ने की दर 3.2 से 3.5 प्रतिशत होने के बाद सरकार की देनदारियां बढ़कर 85 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गयी हैं।
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