जब एयरपोर्ट से निकल कर सिनेमाहाल पहुंच गए अटल जी, खिचड़ी बनाने के थे एक्सपर्ट

ऊंचाई के तख़्त पर बैठने वाला अकेला रह जाता है। इसको समझने के लिए भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर गौर करना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले की तरह टहलते हुए चांदनी चौक के पराठे वाली गली में पराठे खाने या शाहजहां रोड पर चाट वाले के पास खड़े होकर चाट खाना नामुमकिन हो गया था। उन्हें जीवन भर इस बात की निराशा रही।

शिखर पर पहुंचकर अकेले हो गए थे अटल जी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने एक बार अपने सहयोगी विजय गोयल से इसका ज़िक्र किया था जब उनसे गया पूछा था कि उन्हें किस बात की कमी सबसे अधिक अखरती थी। उन्होंने तुरंत जवाब दिया था, “फक्कड़पन।” गोयल के मुताबिक़ उनकी कविताओं में भी इसका दर्द झलकता है। उनकी एक कविता की पंक्ति कहती है कि, ‘शिखर पर पहुंचकर आदमी अकेला होता जाता है।’

जब एक वोट से मात खा गए थे अटल जी

इसी तरह जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के असामयिक निधन तथा एक वोट से उनकी सरकार के गिरना का दु:ख उन्हें बराबर रहा। अटल जी को हंसी ठहाके और गप्पे लड़ाने के साथ अपनी कविताएं सुनाने का शौक था।

राजनेता के अंदर छिपा था साहित्यकार व कवि

अटल जी चाहते थे उन्हें राजनेता नहीं बल्कि एक साहित्यकार या कवि के रूप में पहचान मिले। फिल्में और नाटकों का शौक रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री एसडी बर्मन के गानों के फैन थे। मेला-ठेला और खानपान में भी उनकी उतनी ही रूचि थी। एक बार वर्ष 1994 में जब विदेश यात्रा से लौटे तो एयरपोर्ट से ही सीधे ‘1942-ए लव स्टोरी’ देखने सिनेमाहाल पहुंच गए।

खिचड़ी बनाने में थे एक्सपर्ट

खाना बनाना उनकी पसंदीदा हॉबी थी। खिचड़ी बड़ी अच्छी बनाते थे। इस खिचड़ी की बदौलत ही एक बार खाने की मेज पर उनकी और तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री व ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम प्रमुख जे जयललिता के बीच चुप्पी टूटी थी और राजनीतिक संकट के समाधान की राह निकली थी।

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